Book Title: Rekhaganit
Author(s): Atmaram Babu
Publisher: Atmaram Babu

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२३ ) - नम्बर साध्य कल्पित अर्थ फल खौंचनी है कि वह उस रेखा के साथ समकोन बनावे एक अपरमित सोधी । 'उस विंद से उस रेखा पर लंब रेखा और उसके बा- डालना हर एक बिंदु (त्रिभुज) तीग सीधी रेखा जिन- ऐसा त्रिमुज बनायो कि जिसकी में से हर एक दो मिल- मुज उन रेखात्रों के अलग २ कर तीसरी से बड़ी हैं। बराबर हों एक पमिति सीधी रेखा उस पर समलिबाहु त्रिभुज बना. ना है (समानान्तर चतुर्भुज) एक त्रिभुज और एक त्रिभुज के बराबर एक ऐसा समासरलकोन नान्तर चतुज बनाना कि उसका एक कोन उस कोन को बरावर हो एक सीधी रखा एक उस रेखापर उस विमुज के बराविज और एक लरल- बर रोसा ससानान्तर चलुभुज कोन | बनाना जिसका एक कोन उस को न के बराबर होबे एक ऋतु और उम ऋजमज क्षेत्र के बराबर एक राक सरल कोन ऐसा समानान्तर चतुम ज बनाना कि उसका एक कोन उस कोन के बराबर हो पानमान एक सीधी रेखा और उस रेखा पर उस ऋजुमज क्षेत्र एक ऋजुमजक्षेत्र और के बराबर शेसा समानान्तर चतुएक सरल कोन | म ज बनाना कि उसका एक कोग उस कोन के बराबर हो एक परिमित सीधी। उस रेखा पर बा बनाना रेखा १४अध्याय एक नमुनक्षेत्र उमके बराबर एक वर्ग बनाना इति For Private and Personal Use Only

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