________________
उकुर-फेरू-विरचित माना जाता था । भीष्म कोई सफेद रंग का पत्थर होता था। बुद्धभट्ट (२१२-७९) के अनुसार कषायक पिलाहट लिए हुए लालरंग का पत्थर होता था जो युक्तिकल्पतरु के अनुसार स्फटिक का एक भेद मात्र था । सोमलक नीलमायल सफेद पत्थर था और कुल कर्केतन के किस्म का नीला पत्थर था ।
वराहमिहिर की रत्नों की तालिका में बाईस नाम गिनाए गए हैं पर एक ही रत्न की अनेक किस्में देखते हुए उनकी संख्या कम कर दी जा सकती है। जैसे शशिकान्त स्फटिक का ही एक मेद है, महानील और इन्द्रनील नीलम हैं, तथा सौगंधिक और पराग मानिक के ही भेद हैं । इस तरह रनों की संख्या घट कर उन्नीस हो जाती है यथा स्फटिक के सहित दस रत्न, कर्केतन, पुलक, रुधिराक्ष तथा विमलक, राजमणि, शंख, ब्रह्ममणि, ज्योतिरस और सस्यक । ज्योतिरस और सस्यक का उल्लेख अर्थशास्त्र (२।११।२९) में भी हुआ है । शंख से शायद यहां दक्षिणावर्त शंख का अनुमान किया जा सकता है । ज्योतिरस शायद जेस्पर या हेलियोट्रोप था ।
उपर्युक्त रत्नों के सिवाय, फिरोजा (पेरोज, पीरोज) लाजवर्द और लसुन यानी लहसुनिया या वैडूर्य के नाम भी आए हैं । रत्नसंग्रह । (१९) में मसारगर्भ (रूपमुसारगर्भ, मुसलगर्भ, मुसारगल्व; पालि-मसारगल्ल, मुसारगल्ल ) को दूध पानी अलग करने वाला, श्यामरंग का, चमकीला तथा दुष्ट दोषों का अपहर्ता कहा गया है । शब्दकल्पद्रुम ने इसे इन्द्रनीलमणि कहा है जो ठीक नहीं । महाभारत (२१४७१४ ) में भगदत्त द्वारा युधिष्ठिर को अश्मसार का बना पात्र देने का उल्लेख है जिसकी पहचान शायद मसारगर्भ से की जा सकती है । मसारगर्भ की पहचान चीनी रुन-चे-यू यानी जमुनियां से की जाती है, पर अश्मसार यशब भी हो सकता है। क्यों कि आसाम का पड़ोसी बर्मा यशब के लिए प्रसिद्ध है ।
ठक्कुर फेरुकृत रत्नपरीक्षा (१४-१५) में नवरत्न यथा पमराग, मुक्ता, विद्रुम, मरकत, पुखराज, हीरा, इन्द्रनील, गोमेद और वैडूर्य गिनाए हैं। इनके सिवाय हसणिया (९२-९३) फलह (स्फटिक, ९५-९६) कर्केतन (९८) भीसम (भीष्म, ९९) नाम आए हैं । ठक्कुर फेरू ने लाल, अकीक और फिरोजा को पारसी रत्न बतलाया है (१७३ ), इस तरह ठक्कुर फेरू के अनुसार रत्नों की संख्या सोलह बैठती है।
पर वर्णरत्नाकर के रचयिता ज्योतिरीश्वर ठक्कुर (आरंभिक १४ वीं सदी) के समय में लगता है कि १८ रत्न और ३२ उपरत्न माने जाते थे ( वर्णरत्नाकर, पृ० २१, ४१, श्री सुनीतिकुमार चेटर्जी द्वारा संपादित, कलकत्ता १९४०)। रत्नों की तालिका में गोमेद, गरुडोद्गार, मरकत, मुकुता, मांसखंड, पद्मराग, हीरा, रेणुज, मारासेस, सौगं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org