Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Thakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 203
________________ १०६ ठकुर- फेरू - विरचित तसु पय परमज्जोयणु भाणु, जस निम्मलु गुणगणह निहाणु । जुगपवरागम संसयहरणु, जिणपवोह सुरिसुहगुरु सरणु ॥ २२ ॥ तसु पट्टुद्धरु गुरु मुणिरयणु, मयणविणासणु सिवसुहकरणु । भवियलोयजण मणआणंदु, संपइ जुगपहाणु जिणचंदु ॥ २३ इय इत्तिय सुहगुरु आमनइ, जिणचंदसुरि जुगवर जो मनइ । सुज्जि रमइ सासय सिवनारि, बलवि न पडइ इत्थ संसारि ॥ २४ जक्खिणि जक्ख विउण चउवीस, विज्जादेवि चहूणी वीस । इय चउ (स) ठि मिलि देहि असीस, जिणचंदसुरि जिउ कोडि वरीस ॥ २५ संघसहिउ फेरू इम भइ, इत्तिय जुगपहाण जो थुणइ । पढइ गुणइ नियमणि सुमरेइ, सो सिवपुरि वर रज्जुकरेइ ॥ २६ तेरह सइतालइ महमासि, रायसिहर वाणारिय पासि चंद तणुब्भवि इय चउपईय, कन्नाणइ गुरुभत्तिहि कहिय ॥ २७ सुरगिरि पंच दीव सव्वेवि, चंद सूर गह रिक्ख जि केवि । रयणायर घर अविचल जाम, संघु चउव्विहु नंदउ ताम ॥ २८ ॥ इति जुगप्रधान चतुपदिका समाप्ता ॥ ६ ॥ जिणपबोह गुरराय चलणपंकय वर अलिवलु । नवविह जिय दयकरणु मयण गय सिंह महाबलु । चंदुज्जलु गुणविमलु कित्ति दस दिसिहि पसिद्धउ । दवणु पदिय चउ कसाय गुणगणिहि समिद्धउ । सुरिंदु पणय वण जण सहिउ, वंछिउ सुहियण निरु नरहु । रिउ अंतरंग मय अवहरणु पय पढमक्खरि गुरु सरहु ॥ १ ॥ Jain Education International ॥ सं० १४०३ फा० शु० ८ लि० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206