Book Title: Ratnakar Pacchisi Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ फेब्रुआरी 2011 न को धर्म गये भवेजी, करवू पिण अतिकष्ट, वृतमांन भवरागताजी, तेणे गण्य भव नष्ट, जगतगुरु !..... 27 प्रभु आगल सुं दाखवूजि, मुझ आश्चर१४ परिवार, तिनकाल जीण ! जांण छो जी, तरियो तुज आधार, जगतगुरु !..... 28 भद्रक बुद्धे मुनि नमेजि, तेहमां हरखं रे आप, जिनमत वितथ परूपणाजी, करतां न गणि भित, जस-ईंद्रीसुख लालचेजी, किधो काल वति(ती)त, जगतगुरु !..... 30 तत्वातत्त्व गवेसणाजी, करवू पिण अतिदूर, तत्वपरूपक मानथि जि(जी), विस्तार्यो भव भूर, जगतगुरु !..... 31 तुम सम दिनदयालूओजि, नवि बिजो जिनराज, दयाठांम मुझ सरिखोजि, छे बिजो कुण आज, जगतगुरु !..... 32 श्रीसीधाचलमंडणोजि, रिषभदेव जिनराज, रत्नसागरसूरि स्तव्योजि(जी), निर्मल समकितकाज, जगतगुरु !..... 33 निज नाण-दर्सण-चरण-वि(वी)रज, परमसुख रयणायरो, जिनचंद्र नाभिनरिंदनंदन, त्रिजगजिवन भायरो, उवज्झायवर श्रीदि(दी)पचंद, सिस गणी देवचंद्र ए संगभक्ती भविक जिवने, करो मंगलवृंद ए // जगतगुरु !.....34 // इति श्री रत्नागर पच्चीसीनी भास संपूर्णः // -x

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4