Book Title: Ratnakar Pacchisi Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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________________ ११८ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ कवि देवचन्दजीनी एक अप्रगट रचना "रत्नाकर पच्चीसीभास' - सं. मुनिसुजसचन्द्र-सुयशचन्द्रविजयौ आत्मज्ञाननी सर्वश्रेष्ठ कक्षाए पहोंचेला श्रेष्ठयोगीनी तत्वप्रचुर संवेदना एटले पू. देवचन्द्रजीनी स्तवनावली, अथवा बीजी रीते विचारीए तो सूक्ष्म पदार्थोनो रसास्वाद करावती सुमधुर पद्य रचनाओ. प्रस्तुत कृति पू. देवचन्द्रजीनी तात्त्विक रचनाओमांनी एक अप्रगट रचना छे. पू. रत्नाकरसूरिजीए युगादीश श्रीआदिजिन समक्ष दोषोनी आलोचना करता 'रत्नाकरपञ्चविंशिका' नामनी संस्कृत कृतिनी रचना करी. पू. देवचंद्रजीए मूळ संस्कृत पद्योना भावोनुं उद्धरण करी गुर्जर पद्यानुवाद रूपे सौ प्रथम "रत्नाकर पञ्चविंशिका भास" नामनी कृतिनी रचना करी.. कृतिमां कुल ३४ पद्यो छे. तेमां २८ पद्यो सुधी मूळ संस्कृत कृतिना भावोनो अनुवाद करी अन्त्य पद्योमां जिनमतविरुद्ध प्ररूपणा, 'तत्त्वप्ररूपक' उपमाथी गर्व जेवा जेवा विशेष अतिचार (दोषो) पर प्रकाश पाड्यो छे. कृतिना अन्तमां पोतानी गुरुपरम्परा नोंधी ग्रन्थ, समापन कयुं छे. देवचन्द्रजीना जीवनचरित्र उपर तथा तेमना साहित्य ऊपर घणुं साहित्य प्रकाशित थयेलुं छे. माटे ते माटे ते कृतिओ जोइ लेवा जिज्ञासुओने निवेदन छे. शब्दकोश १. गद = रोग ८. धायुं = ध्यायु-ध्यान कर्यु २. दाव = अनुकुळ समय, लाग ९. कल्या = जाण्या ३. मावीत्र = माता-पिता १०. कोज्य = ४. रस्य = रस ११. विट = व्यभिचारी माणस ५. चूंप = ? १२. कारा = जेल ? ६. परिपदा = उपनाम/पदवी(?) १३. निदान = कारण ७. घूसियो = १४. आश्चर = आश्चर्य(?)

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