Book Title: Ratnakar Pacchisi Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ १२० अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ कांम वषे विषय पणेजी, भोग विडंबनि वात, ते सूं कहिये लाजताजी, जांणो छो जगतात, जगतगुरु !.. १३ परमात्मपद निपजेजि, श्रीनवकार प्रभाव, ते कुमंत्रे घूसियों जि, इंद्रिसुखने हाय (व), जगतगुरु !..... १४ श्रीजिनआगम दुखव्योजी, करी कुशास्त्रानो संग, अणाचार अति आचरुंजी, भूले कुदेवनो संग, जगतगुरु !..... १५ द्रष्टिप्राप्य प्रभूमुख तजीजी, धार्युं नारिरूप, घहन विषयविषधुम्रथिजी, न ग्रह्युं आत्मस्वरूप, जगतगुरु !..... १६ मृगनयनि मूख निरखतांजी, जे लाग्यो मन राग, न गयो सु(श्रु)तजल धोयतांजी, कुंण कारण माहाभाग्य, जगतगुरु !..... १७ अंग चंग गुण नवि कल्यांजी, नवि वर प्रभुता रे कांइ, तो पिण माचूं लोकमाजि, मांनविडंबित कांइ, जगतगुरु !..... १८ प्रतिक्षण आओखो घटेजि, न घटे पातिक बुध, जोवनवय जातां थकाजि, विषयाभिलाष प्रवृधि, जगतगुरु !..... १९ ओषधतंनु रखवालवाजि, सेव्या आश्रव रकोज्य° (?) पिण जैनधर्म न सेवियोजि, है ! है ! मोह मरोज्य, जगतगुरु !..... २० जिव-कर्म-भव-सिव नही [जी], विट" मूखवांणि रे पिघ तुज केवलरवि ओगयेजि, आप संभाल न लिध, जगतगुरु !..... २१ पात्र भकति जिन पूजनाजी, नवि मुनी - श्रावकधर्म, रत्नविलाप पेरे कर्योजी, मुझ माणसनो जन्म, जगतगुरु !..... २२ जिनधर्म सुख फरसतांजि, सेववा विषय विभाव, सुरमणि-सुरघट एहनांजि, ए छे मूढ सभाव, जगतगुरु !..... २३ भोगलीला ते रोग छे जी, धन ते निधन समांन, दारा कारा१२ नरकनिजी, न विचार्यू ए निदांन१३, जगतगुरु !..... २४ साधूआचार न पालियोजि, न कर्यो पर उपगार, तिरथउधार न निपन्योजि, ते गयो जन्मारो हार, जगतगुरु !..... २५ दूरिजन वचन खमे नहिजी, सूतजोगे न विराग, लेस अध्यात्म नवि रम्योजि, किम लहस्यूं भवत्याग, जगतगुरु !... २६

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