Book Title: Rajasthan ke Jain Sanskrut Sahityakar Author(s): Shaktikumar Sharma Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 8
________________ -0 ० ૪૫૪ Jain Education International कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ••• के नाम से विख्यात हुए। आपकी दीक्षा सं० १४६३ में हुई और वाचनाचार्य पद १४७०, उपाध्याय १४८० एवं आचार्य पद १४६७ में प्राप्त किया । +++ आपकी एकमात्र रचना नेमिनाथ महाकाव्य है । नेमिनाथ महाकाव्य संस्कृत के ह्रासकाल की रचना है । भारवि एवं माय द्वारा प्रवर्तित अलंकार मार्ग की प्रवृत्तियों का अनुकरण करते हुए कीतिरत्नसूरि ने छोटी-सी घटना को सजा-संवार कर १२ सर्गों में प्रस्तारित कर दिया। स्वप्न, वसन्त वर्णन, धर्मोपदेश, निर्वाण प्राप्ति आदि के विवरण मनोरम एवं रोचक बन पड़े हैं। (२९) नवचन्द्रसूरि नवचन्द्रसूरि के जीवन-चरित्र के विषय में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी। तोमरनरेश वीरम के सभासदों की व्यग्योक्ति से आहत होकर नयचन्द्र सूरि ने प्राचीन कवियों की प्रतिभा से प्रतिस्पर्धा में हम्मीर महाकाव्य की रचना की ।" रणस्तम्भपुर ( रणथम्भौर ) के महाराजा हम्मीर के जीवन चरित का वर्णन होने के कारण इतना निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनका राजस्थान से गहन सम्बन्ध रहा होगा । " प्रथम छः सर्गों में चाहमान वंश की उत्पत्ति तथा हम्मीर के पूर्वजों का वर्णन है। मुख्य कथन ८-१३ सर्गों में है । राजपूती शौर्य की साकार प्रतिमा महाहठी हम्मीर एवं अलाउद्दीन खिलजी के घनघोर युद्धों एवं अन्ततः प्राणोत्सर्ग का वर्णन है। हमीर काव्यम् की प्रमुख विशेषता यह है कि कल्पना एवं काव्य-सौन्दर्य के आवरण में कहीं भी ऐतिहासिक तथ्य विलीन नहीं हो पाये हैं। काव्य की दृष्टि से यह ग्रन्थ उच्च बिन्दु तक पहुँचा हुआ है। इसके काव्यगत वैशिष्ट्य पर स्वयं कवि को गर्व है । (३०) जिनहर्ष - जिनहर्ष ने अपने काव्य वस्तुपालचरित की रचना चित्रकूट (चितौड़) के जिनेश्वर मन्दिर में सं० १४६७ में की। * आठ विशालकाय प्रस्तावों में कवि ने चालुक्य नरेश वीरधवल के नीति निपुण मन्त्री वस्तुपाल एवं उनके अनुज तेजपाल का जीवनचरित लिखा है। इस काव्य में वस्तुपाल एवं तेजपाल के विषय में उपयोगी जानकारी है किन्तु पौराणिक संकेतों एवं काव्यात्मक वर्णनों में कथावस्तु इतनी उलझ गयी है कि उसको प्राप्त करने के लिए पाठक का मन आहत होकर निराश हो जाता है। ४५५६ श्लोकों के इस महाकाव्य में वस्तुपाल के जीवन पर मुश्किल से २५०३०० श्लोक ही प्राप्त होते हैं । कवि में मानवीय गुणों, साहित्यिक प्रेम एवं जैन धर्म के प्रति अपार उत्साह परिलक्षित होता है। वस्तुपाल का जितना वर्णन दिया गया है वह प्रामाणिक है यह सन्तोष की बात है । १ हम्मीर महाकाव्यम्, १४ : ४३, २ वही, १४ : २६ ३ वही, १४ : ४६ ४ वस्तुपालचरित प्रशस्ति, ११ ५ भट्टारक पट्टावलि शास्त्र भण्डार (३१) जिनहं ससूरि - मेघराज एवं कमलादे के पुत्र जिनहंससूरि जिनसमुद्रसूरि के शिष्य थे। सं० १५२४ में जन्म ग्रहण कर १५३५ में दीक्षा प्राप्त की । धौलपुर में बादशाह को चमत्कार दिखाकर ५०० बन्दियों को कारागार से मुक्त कराया । आपकी प्रमुख कृति आचारांगसूत्र दीपिका है जिसकी रचना १५७२ में बीकानेर में हुई । (३२) भट्टारक ज्ञानभूषण — भट्टारक ज्ञानभूषण नामक चार व्यक्ति हो चुके हैं। प्रस्तुत भट्टारक ज्ञानभूषण ज्ञानकीर्ति के भ्राता थे । सं० १५३५ में सागवाड़ा में हुई प्रतिष्ठाओं का संचालन दोनों भ्राताओं ने ही किया । आप बृहद शाखा के भट्टारक के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा ज्ञानकीर्ति लघुशाखा के आपने गुजरात, आभीर, तैलब, महाराष्ट्र, द्रविड़, रायदेश (ईडर), मेरुभार (मेवाड़), मालवा, कुरुजांगल, विराट, नीमाड़, आदि प्रदेशों को अपने ज्ञान से प्रभावित किया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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