Book Title: Raidhu Sahitya ki Prashastiyo me Aetihasik va Sanskruti Samagri
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ ... . ." 1. मो. राजाराम और एम० ए०, एफ० एन० जी० एस०, शास्त्राचार्य, साहित्यरत्न रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सामग्री भारतीय वाङ्मय के उन्नयन में जिन वरेण्य साधकों ने अनवरत श्रम एवं अथक साधना करके अपना उल्लेख्य योगदान किया है, उनमें महाकवि रइधु' अपना प्रमुख स्थान रखते हैं. उन्होंने अपने जीवनकाल के सीमित समय में २३ से भी अधिक विशाल अपभ्रंश ग्रंथों की रचना करके साहित्य-जगत् को आश्चर्यचकित किया है. रचनाओं का विषय-वैविध्य संस्कृत-प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी आदि भाषाओं पर असाधारण पाण्डित्य, इतिहास एवं संस्कृति का तलस्पर्शी ज्ञान, समाज एवं राष्ट्र को साहित्य, संगीत एवं कला के प्रति जागरूक कराने की क्षमता जैसी उक्त कवि में दिखाई पड़ती है वैसी अन्यत्र शायद ही कहीं मिलेगी.. कवि की कवित्वशक्ति उसके वर्ण्य-विषय में तो स्पष्ट दिखती ही है किन्तु समाज एवं राजन्यवर्ग के लोगों को भी उसने साहित्य एवं कलाप्रेमी बना दिया था, यह कवि रइधू की अद्वितीय देन है. ऐसी लोकोक्ति प्रसिद्ध है कि लक्ष्मी एवं सरस्वती का सदा से वैरभाव चला आया है. कई जगह यह उक्ति सत्य भी सिद्ध हुई लेकिन कवि ने उनका जैसा समन्वय किया-कराया, वही उसकी विशिष्ट एवं अद्भुत मौलिकता है, उदाहरणार्थ कवि की प्रशस्तियों में से २-३ अत्यन्त मार्मिक प्रसंग उपस्थित किये जाते हैं, जिनसे कवि-प्रतिभा का चमत्कार स्पष्ट देखने को मिल जाता है. महाकवि रइधू की साधना-भूमि गोपाचल (ग्वालियर) में संघवी कमलसिंह नामक एक नगरसेठ रहते थे जो अत्यन्त उदारवृत्ति से जीवन-यापन करते थे. वे महाकवि के मित्र एवं परमभक्त भी थे. राज्यपदाधिकारी होने से वे राज्य के कार्यों में ही व्यस्त रहते थे. एक दिन वे उससे घबराकर महाकवि से भेंट करते हैं तथा निवेदन करते हैं: सयणासण तंबरम तुरंग, धयछत्तचमर भामिणि रहंग । कंचणधणकणघरदविणकोस, जाण्इ जंपाइ जणिय तोस । तह पुण एयरायरदेसगाम, बंधव णंदण णयणाहिराम । सारयरुश्रणुपुणुबच्छुभाउ, जं जं दीसइ णाणा सहाउ । तं तं जि एछु पावियइ सब्छु, लभइ ण कच-माणिक्कु भन्छ । एच्छु जि बहु बुह णिवसहिउ किट्ट, उ सुकउ कोवि दीसइ मणि? । भो णिसुणि वियक्खण कहमि तुज्झ, रक्खमि ण किंपिणिय चित्त गुज्झ। -सम्मत्त० ११७।१-७. तुहु पुणु कन्वरयण रयणायरु, बालमित्तु अम्हहं गेहाउरु । तुहु महु सच्चउ पुण्ण सहायउ, महु मणिच्छ पूरण अणुरायउ। -सम्मत्त० १।१४।८-६. १. महाकवि रइधू के जीवनवृत्त एवं साहित्य-परिचय के लिए 'आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रन्थ में प्रकाशित मेरा निबन्ध देखिए-पृष्ठ १०१-११५. wwwww lololola oldiolo lololl ololololololol Jain Education Interne Sonal w na senty www.jainerary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12