Book Title: Raidhu Sahitya ki Prashastiyo me Aetihasik va Sanskruti Samagri
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 12
________________ राजाराम जैन : रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सामग्री : 665 कि कवि ने अपनी रचना के लेखन काल में उक्त साहित्य एवं साहित्यकारों को अपने सम्मुख एक आदर्श के रूप में रखा है तथा दूसरा यह कि कवि ने अपनी रचनाओं में जो कुछ भी लिखा है वह सब उसने परम्परा के अनुसार ही लिखा है आगम विरुद्ध नहीं. इस प्रकार उक्त सूचनाओं से यह स्पष्ट ही विदित हो जाता है कि 14-15 वीं सदी (वि० सं० 1450-1536) के इस महाकवि ने साहित्य-जगत् में कैसा अद्भुत कार्य किया है. साहित्य के साथ इतिहास का समन्वय कर उसने साहित्य समाज एवं राष्ट्र की बहुमुखी अमूल्य सेवा की है. मध्य भारत के सम्बन्ध में उनकी सूचनाएँ अत्यन्त नवीन एवं मौलिक हैं. इनके आधार पर वहाँ का एक सांगोपांग, विशद एवं प्रामाणिक राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा मूर्ति, एवं स्थापत्यकला का सुन्दर इतिहास तैयार हो सकता है. विस्तार के भय से प्रस्तुत निबन्ध अत्यन्त संक्षेप में सिखना पड़ा है. इसीलिए इसमें पूर्ण सामग्री भी उपस्थित नहीं की जा सकी है. यद्यपि कुछ विशेष दिक्कतों के कारण रइधू के सभी ज्ञात हस्तलिखित ग्रन्थों में से कुछ ग्रंथ भी मुझे उपलब्ध नहीं हो सके, किन्तु जो मिल गये उन्हीं के आधार पर उक्त लेख एक बानगी के रूप में सहृदय पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया गया है. कवि की सभी रचनाएँ अप्रकाशित हैं तथा दुर्भाग्य से उनकी सभी प्रतिलिपियाँ एक ही स्थान पर संग्रहीत नहीं हैं, देश के विविध शास्त्रभण्डारों में इक्के-दुक्के यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं. वहाँ से आसानी से उपलब्ध कर उनका पूर्ण उपयोग किया जा सके ऐसी सुविधाएँ भी शोधकों के लिए अभी सम्भव नहीं हो सकी. उक्त कवि के साहित्य पर अभी किसी का विशेष ध्यान भी नहीं गया है अतः प्रायः सभी प्रकार के साधनों के अभावों में भी यहां जो लिखा गया, यह एक साहसी प्रयास ही है. आशा है साहित्य जगत् इससे एक अप्रकाशित महाकवि का मूल्यांकन शीघ्र ही करेगा. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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