________________
पुष्पमालाप्रकरणम्।
प्रस्तावना।
AAAAAACHAR
परिमाण ग्रन्थ औरभी लिखाए थे। दूसरी प्रतिभी मंत्री वाछाकीही लिखी हुई है। उसके लिखाने वाले भंडसाली श्रीधरनेभी | इससे पूर्व लाख श्लोक परिमित प्रतियां लिखवाई थी। ___साधुसोमजीकी विद्वत् परम्परा आगेभी चलती रही। उनके शिष्य वा० कमललाभके शिष्य चरणधर्मके शिष्य मुनिप्रभके धर्ममेरुने सं. १६०४ ? बीकानेर में 'सुखदुख विपाक सन्धि 'की रचना की, जिसकी प्रशस्ति इस प्रकार है :
"हिव खरतर गच्छपति, श्रीजिनभद्रसूरीन्द्र । जेहना पय सेवइ, भगतइ सुरनर वृन्द ॥ २१ ॥ पाठक वर श्रीसिद्धान्त-रुचिहि तमु सीस । चउदह विद्यानऊ, जगमांहि तेह अधीस ॥ तसु सीस थयउ वाचक, साधुसोम उदार | श्रुतसागरनउ हेलई, लियउ तिणि पार ॥ तसु सीस कमललाभ, वाचक मुनि आ(जा)णउ । तसु सीस चरणधर्म, महीयल महिइ वखाणउ ॥ २२ ॥ जिहिं तणइ प्रसादई, पाम्यउ मई श्रुतसार । तेहना पय भवि भवि, होज्यो मुझ सुखकार ॥ २३ ॥ हिव संप्रति श्रीजिन-माणिक्य सूरि सुजाण | जिणि राजइ करतइ, दीप्यउ संघ जिम भाण ॥ २४ ॥ दाल-चरणधर्म तणउ मुनिप्रभ, सीस अभिनव सुरतरो चिर जयउ महीयलि ध्रुवनी परि, य दिन ए मुनिवरो॥ मुनि धर्ममेरु भणंति जे नर, संघि हियइ धरइ । ते लहई समकित सुणउ भवियण, भवसमुद्र सुखइ तरइ ॥ २५॥" . यह धर्ममेरु बहुत अच्छे विद्वान थे। जिनकी रचित रघुवंश वृत्तिकी एक प्रति जैसलमेर भण्डारमें है। टीकाका परिमाण ८ हजार श्लोकों (मूल सहित १० हजार ) का है। प्रशस्ति इस प्रकार है
CONCATECONOCEROSAROKAR