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| हो गए हैं अतः उनका स्वाध्याय बढ़ना चाहिए था। ऐसे प्रेरणा दायक ग्रन्थोंके प्रचाराभावसेही आज भारतमें अनैतिकताका बोलबाला है, जो हमारे उज्वल भविष्यके लिए बहुतही चिन्तनीय विषय है। अध्यात्मप्रधान भारतका इस प्रकार नैतिक पतन सर्वथा अशोभनीय और बहुतही अखरने वाला है। यदि हमें विश्व में अपनी पूर्व प्रतिष्ठा बनाये रखनी है बढानी है तो हमारे जीवनमें घुसे हुए व बढते हुए दोषोंको दूर करना होगा और वह मानवीय सद्गुणों के विकास द्वाराही होना सम्भव है। आशा है राष्ट्रके कर्णधार, विचारक एवं-हितेषी व्यक्ति इस गम्भीर समस्याकी ओर शीघ्रही ध्यान दे कर और हमारे मुनि गण ऐसे सद्गुण प्रस्थापक मन्थरत्नोंके स्वाध्याय और प्रचारमें अधिकाधिक मनोयोग दे कर राष्ट्रके गौरवको समुज्वल करेंगे।
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ले० अगरचंद नाहटा।