Book Title: Punya Purush
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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लेखकीय
भारतीय कथा साहित्य में जैन कथा साहित्य का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। अतीत काल से ही जैनमनीषी कथाओं के माध्यम से धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक उन गहन रहस्यो को उद्घाटित करते रहे हैं जो अत्यन्त गम्भीर थे । यही कारण है कि कथा साहित्य को भी वही गौरव मिला है जो द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग और चरणकरणानुयोग को मिला है । आगम साहित्य में शताधिक कथाएँ हैं। आगमों की जो संक्षिप्त सूची प्राप्त होती है उससे स्पष्ट है कि आगमों में करोड़ों कथाएँ थीं। उनमें कुछ कथाओं के पात्र प्रागेतिहासिक काल के, कुछ कथाओं के पात्र ऐतिहासिक, पौराणिक और काल्पनिक भी रहे हैं। आगमों के पश्चात् उसके व्याख्या-साहित्य-नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी, टीकाओं में भी कथाओं का विकास मिलता है और शताधिक स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थ भी उपलब्ध होते है । उस विराट् कथा-साहित्य को देखकर अनेक विचारकों को भी आश्चर्य होता है । भाषा की दृष्टि से जैन कथा साहित्य प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, पुरानी गुजराती व राजस्थानी, मराठी और दक्षिण की कन्नड, तेलगु, तमिल आदि में मिलता है। आधुनिक युग में हिन्दी में और गुजराती में विपुल कथा-साहित्य प्रकाशित हुआ है ।
महामन्त्र नवपद के अद्भुत प्रभाव को बताने के लिए जैन मनीषियों ने श्रीपाल की कथा का उल्लेख किया हैं। श्रीपाल के
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