Book Title: Pundit Kavi Tattvavijayji Rachit 24 Jin Gito
Author(s): Jinsenvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ 21 अनंत गुणे करी तूं भरिओ वली ज्ञान क्रिया अनंत जि० । चउत्रीस अतिशय अलंकरिओ तुंतो वरिओ सुक्ख अनंत जि० ॥२॥ अ० तुं तारक छइ साचलो तारण तरण जिहाज जि० । तारो भवसायर थकी दिओ मुगति पुरी नुं राज जि० ॥३॥ अ० | अनंत अनंत भवें करी भई तो कीधा पाप अनंत जि० । कहतां पार न पामीइं सवि जाणइ तूं भगवंत जि० ॥४॥ अ० । जो गुनहगार सेवक हुइ तो साहिब हुइ कृपाल जि० । तत्त्व विजय सेवक प्रतिं एतो होज्यो मंगलमाल जि० ||५|| अ० | । इति श्री अनंत जिन गीतं । १४ । १५ ( मन रंजना लाल ए देशी ) धर्मजिणेसर ध्याई रे मन मोहना लाल, पवित्र करी शुभ भाव रे म...० । नवनिधि ऋद्धि आवी मिलइ रे म... ०, Jain Education International धर्मतणइ परभावि रे म...० ॥ १ ॥ एक खरो रंग धर्मनो रे म .. ० बीजो रंग पतंग रे म... ० । सेव्यो आपइ जे सहीरे म..० अविचल सुख अभंग रे म..० ॥ २ ॥ तेहनी कुण सेवा करइ रे म..० जेहथी न सीझर काम रे म..० । फोकटीया जगमां घणा रे म..० खोटा धरावइ नाम रे म..० ॥ ३ ॥ तन धन योवन कारिमो रे म.. ० साचो श्री जिन धर्म रे म..० । सेवा करतां धर्मनी रे म..० क्षय पामइ अष्ट कर्म रे म..० ॥ ४ ॥ भानुनृपति कुलि केसरि रे म..० माता सुव्रता नंद रे म..० । तत्त्व विजय कहइ धर्मथी रे म.. ० लहीइ परम आणंद रे म.. ० ॥ ५ ॥ । इति श्री धर्म जिन गीतं । १५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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