Book Title: Pundit Kavi Tattvavijayji Rachit 24 Jin Gito
Author(s): Jinsenvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ 24 मोह मल्ल जेणई जीतिओ रे लाल क्रोध नइं को झकझेर म० । माया सापिणि पापिणी रे लाल जोरई लोधी त घेरि म० ।।३।। म० । तुझ महिमा महिमंडलि रे लाल दिन दिन अधिक प्रताप म० । संपद पूरन साहिबो रे लाल चूरन सयल संताप म० ॥४॥ म० | लंछन कलस विराजतो रे लाल नीलुप्पल दल काय म० । सेवक तत्त्व विजय ऊपरि रे लाल महिर करो महाराय म० ॥५॥ म० । । इति श्री मल्लिनाथ गीतं ।१९। २० ( मरकलडा नी देशी) श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी साहिब सांभलो मई तो पुण्यई सेवा पामीजी सा...। मुझ भाग्य प्रगट हूउं आजजी सा० भलइ भेट्या श्री जिनराजजी सा० ॥११॥ घरि आंगणि सुरतरु फलिओजी मन मान्यो सज्जन मलिओजी सा० । आज भावठि सवि भागीजी सा० आज शुभदशा मुझ जागीजी सा० ॥२॥ आज अमियई वूठा मेहजी सा० मुझ निर्मल हुई देहजी सा० । आज मनना मनोरथ फलियाजी सा० आज अंतराय सवि टलियाजी सा० ॥३॥ तुम्ह गुणसुं लागो वेधजी सा० ते तो कुम जाणइ तस भेदजी सा० । निशिदिन रहुं ल(प्र) भुसुं लीनजी सा० जिम जलमां रहइ मीनजी सा० ॥४|| श्री नयविजय विबुध राजइजी सा० वाचक श्री जस विजय गाजइजी सा०। सीस तत्त्व विजय कवि भासइजी सा० जिनना गुण गाया उल्लासइं जी सा०॥ ५॥ । इति श्री मुनिसुव्रत जिन गीतं ॥२०॥ १४. आगलि पाठां० । १५. ते सवि पाठां० ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17