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पंडित कवि तत्त्वविजयजी रचित चोवीस जिन-गीतो
- सं. मुनि जिनसेनविजय महोपाध्याय श्री यशोविजयजी गणिवरना शिष्य तरीके जाणीता एवा कविवर श्रीतत्त्वविजयजीए रचेला, चोवीश जिनेश्वरोनां २४ गीतो अत्रे प्रस्तुत करवामां आवे छे. १६-१७-१८मा शतकोनी स्तवन-चोवीशीनी परंपरामां सुयोग्य रीते गोठवाय तेवी प्रौढता आ स्तवनोमां जोवा मळे छे. उपाध्यायजीना शिष्य होवू ए स्वयं ज एक आशीर्वादरूप बीना गणाय तेवी छे ; अने एमना शिष्यमां विद्वत्ता तथा काव्यशक्ति न आवे तो ज नवाई लागे.
कृतिमां क्यांय रचना वर्षनो उल्लेख नथी मळतो. छतां अढारमा शतकनी आ रचना होवा अन्य ऐतिहासिक तथ्योना संदर्भमां नक्की थई शके तेम छे, एवं पूज्य वडीलोना मुखे जाणी शकायुं छे.
आ गीतोनी एक हस्तप्रति ला.द. विद्यामन्दिर, अमदावाद मां छे, तेनी झेरोक्सना आधारे आ प्रतिलिपि करी छे. ७ पानांनी ते प्रतिमां जो के बीजुं पत्र नथी, छतां तेनी ओळख "चोवीसजिनगीत" (ला.द. क्रमांक ७६४३) एम अपाई छे, तथा घणां स्तवनोने छेडे 'गीतं' शब्द प्रयोजायो छे, तेथी अहीं पण ते ज नामे ओळखावी छे.
पत्र २ नी न्यूनताने लीधे खूटतां अंशो चोथा गीतनी २ कडी, ५-६-७मा गीतो, पू.आ.श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजीनी पासेथी प्राप्त थएली आ कृतिनी अपूर्ण प्रतिना आधारे अहीं उमेरेल छे. ते प्रतिनां प्राप्त पत्रो ५ छे, तेमां १ थी २१ गीतो छे, २२मुं अपूर्ण छे, अने तेमां दरेक गीतने 'स्तवन' तरीके ओळखावेल छे ; ए प्रतिना प्रारंभे "सकलवाचकचक्रचक्रवर्ति महोपाध्याय श्री १९ श्रीजसविजयगणिशिष्य पंडित प्रवर प्रधान पंडित श्री ७ श्री तत्त्वविजयगणिचरणकमलेभ्यो नमो नमः" एम निर्देश छे, तेथी ते प्रति तत्त्वविजयजीना शिष्य नी होवानुं अनुमान करीए तो अनुचित नथी जणातुं. आ प्रतिना पाठो अत्रे पाठां. तरीके नोंधेल छे.
आधारभूत आदर्श-प्रति १८मा शतकनी होवानुं अनुमान थाय छे, अने तेना अंतभागे "मुनि भाव विजयनी परति छे" एवो उल्लेख छे.
प्रतिनी नकल आपवा बदल ला.द. विद्यामन्दिरनो आभार मानू छु.
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पं श्री तत्त्वविजयजीकृत चोवीस जिन स्तवनानि ॥
श्री गुरुभ्यो नमः।
(ईडर आंबा आंबिली रे ...... ए देशी ) ऋषभ जिणंद मया करी रे दरिसन दाखो देव । अलजो छई मनमां घणो रे करवा ताहरी सेव ॥ १ ॥
जिणेसर तुम्हसुं अधिक सनेह । प्राणेसर घj सांभरइ रे खिण मांही सो वार । नाम तुम्हारुं सोहामणुं रे एहज मुझ आधार ॥ २ ॥ जिणे० । तुं जिनजी मुझ वालहो रे जेहवो माहरो आतमराम । मन मधुकर मोही रह्यो रे तुझ चरणे अभिराम ।। ३ ।। जिणे० । नेह पल्यो ते नवि टलइ रे जिम चोल मजीठ नो रंग। एहवू जाणी साहिबा रे पालयो प्रीति अभंग ।। ४ । जिणे० । करुणानिधि कृपा करुं रे परउपगारी कहवाय । श्री जसविजय वाचक तणो रे सीस तत्त्वविजय गुण गाय ।। ५ ।। जिणे० ।
। इति श्री आदि जिन भासः।१।
( शासनदेवत आवो नई अम्हारइ घरि पाहुणा रे लाल .... ए देशी । ) अजित जिणेसर प्राहुणारे मुझ मन मंदिर आवि मेरे साहिबा । भगति करुं भली भांति स्युं रे लाल दिन दिन चढतइ भावि मे० ।। १ ।।
अजित... ।
१. जेहवो आतमराम पाठां. । २. लागी पाठां. ३. स्तवनं पाठां. एवं सर्वत्र ज्ञेयम् । ४. आषाढ भूति अणगार ने रे कहें गुरु अमृतवाणि रे योगीसर चेला, ए देशी पाठां ।
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तेहज घडी लेखई गणुं रे तेह दिवस मुझ धन्न मे० । तेह समय स्वकीयारथो रे लाल जमवारो वली धन्न मे० ॥ २॥ अजित... । अह निशि मुझ मनमां वसइ रे अवर नहीं कोई ध्यान मे० ! तुम्हसुं लागी मोहिनी रे लाल तूंहि ज जीवन प्राण मे० ।। ३ ॥ अजित... । अवधारो अरिहंतजी रे निश्चय मननी वात मे० । निरवह्यो निज दासनि रे लाल त्रिभुवन पति विख्यात मे० ॥ ४ ॥ अजित... ।
ओलगडी सफली करो रे पूरो सेवक आस मे० । तत्त्व विजय प्रभु ध्यानथी रे लाल नित नित लील विलास मे० ॥ ५ ॥
अजित... । । इति अजित जिन भासः ॥२॥
( सुणि मेरी सजनी ... ए देशी) संभव जिननी सेवा कीजइ रे मानव भवनो लाहो लीजइ रे। पूरव पुण्य पसाई पायो रे मई तो दिल मई तूंहिज ध्यायो रे ॥ १ ॥ सं.. । निगुणा दीसइ देव अनेरा रे नाम धरावइं जगमई भलेरा रे। तेहथी काम न सीझइ मेरा रे ते माटइ निहुरा करूं छु तेरा रे ॥ २ ॥ सं..।। साहिब ते जे चाकरी जाणइ रे सेवक नई संभारइ टाणइं रे। गुण अवगुण दिल मांहि नाणइ रे ते सज्जन नई सहु वखाणइ रे ॥ ३ ।। सं.. । कूड कपट हुइ जेहनां मन मई रे मुख मीठा जे धोठा तन मइं रे। कहो किम चित्तडु तेहशुं बाझइ रे तेहसुं प्रीति करी किम छाजइ रे ॥४॥ सं.. । साची प्रीति ते संभवजिनकी रे तुं सवि जाणइ वात ज मनकी रे। साहिब चित्तसुं जोयो विचारी रे तत्त्व विजय प्रभु सेवाकारी रे ॥ ५ ।। सं.. ।
। इति श्री संभव जिन गीतं ।३। ५. सजनी रजनी न जावें रे। ६. करूं तेरा रे पाठां. ।
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( देशी सूडला नी) अभिनंदन जिन आगलि वीनती रे निशि दिन करूं कर जोडि रे । देव दयाकर तुं हवइ पामिओ रे कर्म तणा मद मोडि रे ॥ १ ॥ अभि० । वार अनंती भवमांहि भम्यो रे दीठां दुख अनंत रे । पार न पामुं ते कहतां थकां रे ते जाणो छो गुणवंत रे ॥ २ ॥ अभि० । भवसायरमांहि पडतां थकां रे एकज तुझ आधार रे । चरण ग्रह्यां छइ मई ताहरां सही रे आवागमा निवार रे ।। ३ ।। अभि० । संवर पिता माता सिद्धारथा रे नंदन गुणमणिखाणि रे। दुख भंजन देवह दोलती रे देज्यो कोडि कल्याण रे ।। ४ ॥ अभि० । चाकर याचें ठाकुर आगलि रे तिहां किसी करवी लाज रे । श्री जसविजय वाचक सीस कहइं रे तुं जिन गरीब निवाज रे ॥ ५ ॥ अभि०
। इति श्री अभिनंदनजिन स्तवनम् ।४।
( देशी हमीरीयानी ) सुमति सदा सुहंकरु सुमति तणो दातार , साजन जी प्रभु सेवा तो पामीइं जो होइं पुन्य अपार सा० ॥ १ ॥ सुम० ।। तुम दीदार की आसकी लागी तुम्हस्युं जोर सा० मुख देखी नें हरखीइं जिम विधु देखी चकोर सा० ।। २ ।। सुम० ॥ ज्ञान खजानो ताहरो भरिओ अखय भंडार सा० । कार्दतां खूटे नही दिओ ज्ञानादिक सार सा० ॥ ३ ॥ सुम० ॥ प्रभु चरणई लागी रह्यो मुझ मनि भमर सुरंग सा० । जेहस्युं जेहनुं मन बांध्यु तेहनो न मेलइ संग सा० ।। ४ ।। सुम० ।। ७. सवि जाणें छे भगवंत रे पाठां. ।
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तुम्ह हम यो अंतर होई तो किसी उत्तम रीति सा० ।
तत्त्व विजय प्रभुस्युं खरी मांडी मोंटी प्रीति सा० || ५ || सुम० || । इति श्री सुमति जिनस्तवनं ॥ ५ ॥
६
(शेत्रुंजें जईई लालन शत्रुजई जईई ... ए देशी )
प्रह उठी पद्मप्रभ भवियण वंदो जेहनई रे
दरिसनई लालन अतिहि आनंद लालन अ० पद्म लंछन प्रभुनई पाय विराजें दिन दिन महिमा
लालन अधिक दिवाजे, लालन अ० ॥ १ ॥ विद्रुम वरणों तुम्ह अंग सुहावई
अनुपम मूरति देखी मुझ सुख थावें, लालन मु० । तुम्हस्युं हो लालन माहरें पूरन नेहा
जिम जगि जाणो लालन मोर नें मेहा, लालन मो० ॥ २ ॥
हुं तुझ रागी लालन तुं ही नीरागी
कहो किम चालें लालन प्रीति एकांगी लालन प्री० । नेह करीजें लालन तो नीरवहीइं
फिरी फिरी तुम्हनें लालन अधिक स्युं कहीइं, लालन अ० ॥३॥ खाओ छु लालन हुं तुम्ह खिजमतिगारी
चित्त मांहि धरयो लालन वात ज सारी, लालन वा० ।
बांहि ग्रह्यानी लालन लाज छे
तुम्ह
दोइ चरणनी सेवा लालन देज्यो ते ग्रम्ह नें, लालन दे० ||४|| श्रीधरराजा कुलें तूंहिज दीवो मात सुसीमा लालन सुत चिरंजीवो, लालन सु० । वाचक श्रीजस विजयनो सीस
तत्त्वनी पूरी लालन परम जगीस, लालन प० ॥ ५ ॥ । इति श्री पद्मप्रभ जिन स्तवनं । ६ ।
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( देशी रसीयानी) नेह भरिनि जरिं रे निरखो नाहला अलवेसर एक वार वाल्हेसर । श्री सुपासजी चतुर शिरोमणी दिओ दरिसन धरी प्यार प्राणेसर ||१|| नेह० ॥ इक तारी प्यारी तुझ मूरति सूरति वरणी न जाय जोगीसर। मोहई चित्तमां रे सुरनरनारिनां वली निरमोही कहेवाय कृपानिधि ॥२॥ नेह० ।। जे जेहना चित्त मांहिं जे वस्या तेहनें ते जीवन प्राण परमेसर । वेध वेलाई रे जे रहइं वेगला ते कहिई किम जाणि जीवनजी ।।३। नेह० ॥ गरीब निवाज कहवाओ छो तुम्हो तो करयो सेवक सार सोभागी । दुख दोहग दालिद्र दूरि करो निर्मल ज्ञान दातार दयाकर ॥४॥ नेह० ।। ठाकुर एकज मई तूंहि आदरयो में धरयो तुम्ह ही स्युं रंग रंगीला।। तत्त्व विजय प्रभुजीना ध्यान थी लहीइं ऋद्धि अभंग अमायी ॥५॥ नेह० ॥
। इति श्री सुपास जिन स्तवनं ७।
( छोडी हो प्रभु छोडी चल्यो वनवास... ए देशी ) चंद्रप्रभ हो प्रभु चंद्रप्रभ सुणि स्वामी ,
वीनती हो प्रभु वीनती माहरा मानतणी जी। जाणइ हो प्रभु जाणइ सयल तुं भाव ,
ज्ञानी हो प्रभु ज्ञानी तुं त्रिजग धणीजी ॥ १ ॥ प्रभुबिन हो प्रभु बिन कछु न सुहाइ ,
मीठी हो प्रभु मीठी वात ज ताहरी जी । अवर न हो प्रभु अवर न आवइ दाय ,
___ मोहिनी हो प्रभु मोहिनी छइ तुम्हसुं खरीजी ॥ २ ॥ ८. शीता हो प्रभु शीता पाठां. ।
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मानयो हो प्रभु मानयो साचुं एह ,
मनसुं हो प्रभु मनसुं मिलन ज मई कर्यु जी । कपटइं हो प्रभु कपटइं मिलइ जेह ,
तेहसुं हो प्रभु तेहसुं कीजइ आंतरं जी ॥ ३ ॥ दिल भरि हो प्रभु दिलभरि हुइ नेह ,
उत्तम हो प्रभु उत्तम रीति ते सहु कहइ जी। मत दियो हो प्रभु मत दियो तुम्ह छेह ,
अवगुण हो प्रभु अवगुण मोटा सांसहइ जी ॥ ४ ।। जिनजी हो प्रभु जिनजी तुं दीनदयाल ,
सेवा हो प्रभु सेवा अब सफली करोजी । कीजइ हो प्रभु कीजइ सुख सुगाल ,
संपति हो प्रभु संपति तत्त्व विजय करोजी ॥५॥
। इति श्री चंद्रप्रभ जिन गीतं ।।।
( ए अजुआली रातडी रे आसो आसिक मास मनना मान्या... ए देशी ) सुविधि जिणंद स्युं गोठडी रे मुझ मनि खरिय सुहाय मनना व्हाला । अंतर चितनी वारता रे मन मिल्या विण न कहवाय म० ॥ १ ॥ वाल्हो वाल्हो जी जिणंद मुझ वाल्हो तूं तो मोहइ भविजन वृंद, म० आं०॥ जेहसुं मन मान्यु हुइ रे तेहसुं कइसी लाज म० | तेहसुं सरम जो कीजइ रे तो लाजइ विणसइ काज म० ।। २ ।। तुं साहिब मुझ सिर थकई रे कर्म करइ किम जोर म० । भांजओ मद हवई तेहनो रे जेहनो जगमा सोर म० ॥ ३ ॥
९. तेह पाठां ।
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अहनिशि कर जोडी करी रे चाकर रहइ हजूर म० । ठाकुर मुजरो मानयो रे करयो मया महमूर म० ॥ ४ ॥ थोडइ कहइ घणुं जाणयो रे तुम्हे छो चतुर सुजाण म० । तत्त्व विजय कह माहरो रे साचो तुं सुलतान म० ॥ ५ ॥ । इति श्री सुविधि जिन गीतं । ९ ।
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( बहिनि बन्यो रे विद्याजी नो कल्पड़ो ए देशी ) सयण शीतल जिन पूजा करो ए तो ऊलट आणी अंग हो स० । तूठओ आपइ तूं सही ए तो वांछीत सुरक अभंग हो स० ॥ १ ॥
शीतल जिन पूजा करो ए तो ऊलट आणी अंग हो ए आंकणी । शीतल नयणे निरखतां ए तो शीतल थाइ चित हो स० । शीतल प्रकृति सोहामणी ए तो साची ताहरी प्रतीत हो स० || २ || शी० || मोहइ मन अलगां थकां तूं तो बोलइ नहिं लगार हो स० ।
तोहि पणि तुझ उपरि ए तो मोह्यो सयल संसार हो स० || ३ || शी० |
१०
लीनो हुं गुण ताहरइ जिम अलि लीनो मकरंद हो स० ।
तूंहिज सुरमणि सारिखो ए तो तुं मुझ सुरतरु कंद हो स० ॥ ४॥ शी० |
[4
'श्री नयविजय कविरायनो श्री जस विजय उवज्झाय हो स० । सीस तत्त्व विजय इणि परि भणइ हांरे ए जिननी सुखदाय हो
2
१०. हां जी लीनो पाठां०। ११. होजी श्री. पाठां० ।
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॥ वाल्हो ० ॥
। इति श्री शीतल जिन गीतं । १० ।
। स० ।। ५ ।। शी० ।
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( माहरी सही रे समाणी ... ए देशी ) श्री श्रेयांस साहिब हइ मेरा को नहीं तुम्हशुं भलेरा रे ।
महारा त्रिभुवन स्वामी । तो माटइ तुम्हसुं दिल लाया धरयो नेह सवाया रे... मा० ॥१॥ अंतरयामी नई कहुं शिरनामी खिजमतमां नहिं स्वामी रे मा० । जो हितवच्छल तूं छई साचो तो हृदय न करस्यो काचो रे मा०॥२॥ कूडी लालचि जेह लगावइ तेहथी सुख किम थावइ रे मा० । मोटानि जे चरणे वलगा ते किम थाइ अलगा रे मा० ॥३|| विष्णु नृपति तुझ तात सुहावइ माता विष्णु कहावइ रे मा० । सींह पुरी नगरी नो स्वामी तूं हि ज शिवगति गामी रे मा० ॥४॥ इक तारी तुझ ऊपरि मेरी न लखाइ गति तेरी रे मा० । श्री जसविजय सुगुरु सुपसाई तत्त्व विजय सुख थाइ रे मा० ।।५।। । इति श्री श्रेयांस जिन गीतं ॥११॥
१२
( अहो मतवाले साजनां... ए देशी ) श्री वासुपूज्य जिणेसरू प्रेमइ प्रणमो परभाति रे । लच्छि घणी घरि संपजइ पुहचाडइ मननी खांति रे ।। १ ।।
श्री वासुपूज्य जिणेसरू आंकणी। तुं जगजीवन जंतुनि ताहरो छइ एक आधार रे । आलालूंबओ माहरइ तुं मुझ मनमोहन गार रे ॥२॥ श्री०। तुझनि ऊभा ओलगइ सेवक लख कोडाकोडि रे। समीहित पूरइ तेहनां कुण करइ तुम्हारी होडि रे ॥३॥ श्री०।
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ज्ञाता दाता तुं खरो भवियर्णानि दुखी त्राता रे ।
दरिसन थी शाता हुइ जिनजी जगमाहि विख्याता रे ||४|| श्री० ।
प्रारथना पहिडइ नहीं दायक नहीं तुज्झ समान रे । तत्त्व विजय कहइ पामीरं प्रभु नामई नवह निधान रे ॥ ५ ॥ श्री० । । इति श्री वासुपूज्य जिन गीतं ॥ १२ ॥
१३
( धण री बिंदली मन लागो ए देशी )
साहिबजी हो विमल जिणेसर पूजिइ,
घसी घणुं केसर घोल मेरे लाल । दिन दिन दोलत पामीइ वली वली हुइ रंगरोल मे० || १ || वि० । सा० विमल वदन सोहामणुं जगजन मोहन वेलि मे० । नयन कमल मानुं ताहरइ मुझ मन अलि करइ कोलि मे० ||२|| वि०
सा० मणि माणिक्य हीरे जड्यो मस्तक मुगट सोहंत मे० । भाल तिलक दीपइ भलो सुर नर मन मोहंत मे० ||३|| वि० । सा० कुंडलकी शोभा बनी जाणुं ससि सूरय करइ सेवा मे० । रत्नजडित अंगियां भली मोहइ चित नितमेव मे० ||४|| वि० । सा० चंपक दमणो मोगरो मालती मुचकुंद फूल मे० । तत्त्व विजय प्रभु पूजतां दिइ शिव सुख अमूल मे० ||५|| वि० । । इति श्री विमल जिन गीतं | १३ |
१४
( पूज्य पधारो पाटीइ ए देशी )
अनंतनाथ अरिहंतजी अवधारो एक अरदास ।
भव बंधन थी छोडवा मुझ दीजइ चरणे वास जिनजी ॥१॥ अ० ।
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अनंत गुणे करी तूं भरिओ वली ज्ञान क्रिया अनंत जि० ।
चउत्रीस अतिशय अलंकरिओ तुंतो वरिओ सुक्ख अनंत जि० ॥२॥ अ० तुं तारक छइ साचलो तारण तरण जिहाज जि० ।
तारो भवसायर थकी दिओ मुगति पुरी नुं राज जि० ॥३॥ अ० |
अनंत अनंत भवें करी भई तो कीधा पाप अनंत जि० ।
कहतां पार न पामीइं सवि जाणइ तूं भगवंत जि० ॥४॥ अ० । जो गुनहगार सेवक हुइ तो साहिब हुइ कृपाल जि० । तत्त्व विजय सेवक प्रतिं एतो होज्यो मंगलमाल जि० ||५|| अ० | । इति श्री अनंत जिन गीतं । १४ ।
१५ ( मन रंजना लाल ए देशी )
धर्मजिणेसर ध्याई रे मन मोहना लाल,
पवित्र करी शुभ भाव रे म...० ।
नवनिधि ऋद्धि आवी मिलइ रे म... ०,
धर्मतणइ परभावि रे म...० ॥ १ ॥
एक खरो रंग धर्मनो रे म .. ० बीजो रंग पतंग रे म... ० । सेव्यो आपइ जे सहीरे म..० अविचल सुख अभंग रे म..० ॥ २ ॥
तेहनी कुण सेवा करइ रे म..० जेहथी न सीझर काम रे म..० । फोकटीया जगमां घणा रे म..० खोटा धरावइ नाम रे म..० ॥ ३ ॥ तन धन योवन कारिमो रे म.. ० साचो श्री जिन धर्म रे म..० । सेवा करतां धर्मनी रे म..० क्षय पामइ अष्ट कर्म रे म..० ॥ ४ ॥
भानुनृपति कुलि केसरि रे म..० माता सुव्रता नंद रे म..० । तत्त्व विजय कहइ धर्मथी रे म.. ० लहीइ परम आणंद रे म.. ० ॥ ५ ॥
। इति श्री धर्म जिन गीतं । १५ ।
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( कोइलो परबत धुंधलो रे ए देशी ) सुगुण सनेहा शांतिजी रे लाल निर्मल गुण भंडार रे चतुर नर । नेक निजरि करि जोईइ रे लाल सेवक दिलमां धार रे च० ॥ १ ॥ सु... जो पोतानो त्रेवडो रे लाल तो न करस्यो भेद लगार रे च०। जे गिरुआ गुणे आगला रे लाल ते समजइ चित्र मझार रे च० ॥ २ ॥ सु....। बिरुद निवाहन साहिबो रे लाल तूं हि ज दीनदयाल रे च० । शरणे राखिओ पारेवडो रे लाल तूं मोटो कृपाल रे च० ॥ ३ ॥ सु...।। जब जनम्या श्री शांतिजी रे लाल तब हुई जगमां शांति रे च० । ईति रुजादि क्षय गयां रे लाल नाम खरुं श्री शांति रे च० ॥ ४॥ सु...। विश्वसेन कुलि चंदलो रे लाल अचिरा मात मल्हार रे च० । श्री जसविजय सुहंकरु रे लाल तत्त्व विजय जयकार रे च० ॥५॥ सु...।।
। इति श्री शांतिजिन गीतं ।१६।
( बिंदली नी देशी ) श्री कुंथनाथ मनि ध्याउं मनवंछित सबसुख पाउं हो जिनवर जयकारी ब्रह्मरूप अनोपम सोहइ देखी सुरनर मन मोहइ हो जि० ॥१॥ मोटो हुं तुझ मुख मटकइ अणीआले लोचन लटकइ हो जि० । नाशिका अति अणियाली तुम्ह अधर लाल प्रवाली हो जि० ।।२।। तीन छत्र शिर राजइ ठकुराइ त्रिभुवन की छाजइ हो जि० । देव दुंदुभि गगनिं बोलइ कोई नहीं माहरा स्वामीनइं तोलइ हो जि०।३।। अणहूंतइ एक कोडि सुर सेवकरइ करजोडि हो जि० । सिंहासन बइठा सोहइ प्रभुजी त्रिभुवन पडिबोहइ हो जि० ॥४|| १२. नहीं स्वामीनें पाठां० ।
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श्री नयविजय कविराय सीस श्रीजसविजय उवज्झाय हो जि० । तत्त्व विजय तस सीस प्रभु पूरयो सयल जगीस हो जि० ॥५॥
। इति श्री कुंथु जिन गीतं ।१७।
१८
( ऊभा रहो जी ऊभा रहो ए देशी ) मुजरो ल्योजी मुजरो ल्यो अरनाथ जिणेसर मु.मु. लीला अलवेसर। मु.मु. अरदास वीनवीइ मु.मु. तुम्ह गुण कुण मवीइ मु.मु. ॥ १ ॥ मु.मु. तुम्ह राज राजेसर मु.मु. प्राणनाथ परमेसर । मु.मु. लायक थी लायक मु.मु. दुरगति दुख घायक मु. ॥ २ ॥ मु.मु. चितडाना रे ठारक मु.मु. जगजन हित कारक । मु.मु. साहिब रंगीला मु.मु. तुम्हे छयल छबीला मु. ॥ ३ ।। मु.मु. तुम्ह नाथ निरंजन मु.मु. भव भय दुख भंजन। मु.मु. दरिसन सुखदाई मु.मु. तुम्हारी छइ वडाई मु. ॥ ४ ॥ मु.मु. समरथ सोभागी मु.मु. वल्लभ वडभागी। मु.मु. जाउं बलिहारी मु.मु. तत्त्व विजय सुखकारी मु. ॥ ५ ॥
। इति श्री अरनाथ जिन गीतं ।१८।
( ढाल-अलबेला नी देशी ) मल्लिनाथ मन मोहिउं रे लाल निरखत होत आणंद मन मान्यो रे । अजब मूरति बनी ताहरी रे लाल मुख मोहनवल्ली कंद रे म० ॥१॥ म० । तुझ करुणारस सागरिं रे लाल झीलइ मुझ मन हंस रे म० । पवित्र थाइ परमातमा रे लाल न रहइ पापनो अंस म० ॥२॥ म० ।
१३. सूरति पाठां०।
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मोह मल्ल जेणई जीतिओ रे लाल क्रोध नइं को झकझेर म० । माया सापिणि पापिणी रे लाल जोरई लोधी त घेरि म० ।।३।। म० । तुझ महिमा महिमंडलि रे लाल दिन दिन अधिक प्रताप म० । संपद पूरन साहिबो रे लाल चूरन सयल संताप म० ॥४॥ म० | लंछन कलस विराजतो रे लाल नीलुप्पल दल काय म० । सेवक तत्त्व विजय ऊपरि रे लाल महिर करो महाराय म० ॥५॥ म० ।
। इति श्री मल्लिनाथ गीतं ।१९।
२०
( मरकलडा नी देशी) श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी साहिब सांभलो मई तो पुण्यई सेवा
पामीजी सा...। मुझ भाग्य प्रगट हूउं आजजी सा० भलइ भेट्या श्री जिनराजजी सा० ॥११॥ घरि आंगणि सुरतरु फलिओजी मन मान्यो सज्जन मलिओजी सा० । आज भावठि सवि भागीजी सा० आज शुभदशा मुझ जागीजी सा० ॥२॥ आज अमियई वूठा मेहजी सा० मुझ निर्मल हुई देहजी सा० । आज मनना मनोरथ फलियाजी सा० आज अंतराय सवि
टलियाजी सा० ॥३॥ तुम्ह गुणसुं लागो वेधजी सा० ते तो कुम जाणइ तस भेदजी सा० । निशिदिन रहुं ल(प्र) भुसुं लीनजी सा० जिम जलमां रहइ मीनजी सा० ॥४|| श्री नयविजय विबुध राजइजी सा० वाचक श्री जस विजय गाजइजी सा०। सीस तत्त्व विजय कवि भासइजी सा० जिनना गुण गाया
उल्लासइं जी सा०॥ ५॥ । इति श्री मुनिसुव्रत जिन गीतं ॥२०॥ १४. आगलि पाठां० । १५. ते सवि पाठां० !
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(देशी मोतीयडा नी ) मिथिला नयरी प्रभुजी सोहइ विजय नरिंद नंदन मन मोहइ
मोहना नमिनाथ जिणंदा लालनां नमिनाथ जिणंदा । वप्रा माता मंगलकारी नीलुप्पल लंछन पदधारी मो.ला. ॥१॥ आसकारी सेवक छु तेरा नीरासी प्रभु तुम्ह हओ मेरा मो.ला. । तुम्ह हम किम ए वात ज बनस्यइ बिरुद अंगीकृत तुम्ह किम
रहस्यइ मो. ला. ॥२॥ अवर पासि जई जब याचीस्यइ तब ताहरूं भलुं नहीं दीसइ मो.ला. । देई लालचि दूरिजे रहवं ते खिण खिण मनमां दुख सहवं मो.ला. ||३|| गुणवंतस्युं जे गोठि करी जइ तेह वेला लेखामां लीजइ मो.लो. । इम चित जाणी करुणा आणी देयो परमाणंद गुणखाणी मो.ला. ॥४॥ साहिब साचा ते कहवाइ निगुणा सेवकनि निरवाहइ मो.ला. । तत्त्व विजय प्रभु ध्यानि रहइ मंगल माला नित नित लहिइ मो.ला. ॥५॥ । इति श्री नमिनाथ जिन गीतं ॥२१॥
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(ढाल फागनी ) ब्रह्मचारी शिर सेहरो हो वंदो नेमि जिणंद समुद्र विजय नृप लाडिलो हो मात शिवादेवी नंद ।।१।। नेमीसर जिनवर भेटीइ हो मेटीइ पाप पडूर ने... तोरन आए तुरत फिरे हो पशुआं सुणी रे पोकार
जीव दया मनि आदरी हो परिहरी राजुल नारी ।।२।। ने० वरसीदान देइ करी हो सहसावनि अभिराम । लिइ संयम एक सहसस्युं हो पछई लहिउं केवल स्वामी ॥३।। ने०
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तब राजुल रैवत चढी हो पुहती पिउके संग दीख ग्रही केवल लही हो पाल्यो ते प्रेम अभंग ॥४॥ ने०। रैवत मंडण नेमि गुंसाई जग जन नयनानंद । श्री यादव कुलि दिनमणी हो तत्त्वविजय सुखकंद ॥५॥ ने०।
। इति श्री नेमिनाथ जिन गीतं ॥२२॥
( दंड न देउं तुनइ माहरो ए देशी ) जिनवर तई मेरो मन मोहीओ पुरुषादानीया पास हो जि. । प्रगट प्रताप ते ताहरो पूरन पूरक आस हो जि. ॥१॥ त० । हुँ रंजिओ गुण ताहरइ जिम चोल रंगिउं चीर हो जि. । रंग करारी नवि टलइ जो नित नित धोवाइ नीर हो जि. ।।२।। त० । वाणारसी नगरी धणी अश्वसेन कुलि चंद हो । मात वामा के नंदनां राणी प्रभावती कंत हो जि. ॥३॥ त० । कलियुगमांहि पामीओ देव तुम्हारो दीदार हो । एह कृतारथ लेखवू भव सायर पार उतारि हो जि. ॥४|| त० । उपगारी सहजई अछड् अहि कीधो धरणराय हो । तत्त्व विजय सेवक सदा प्रेमइं प्रणमइ पाय हो जि. ॥५।। त० ।
। इति श्री पार्श्वजिन गीतं ।२३।
( थुणिओ रे मई तुं सुरपति जिउं थुणिओ ए देशी ) गायो गायो रे मई वीर जिणंद मइं गायो, सकल सुरासुर
सेवित पदयुग। शुभमति करी मइ बंधायो रे, प्रभु वीर जिणंद मई गायो ॥१॥
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________________ चउसठि इंद्र मली लेई सुरगिरि निर्मल जल न्हवरायो / जब शचीपति मनि संशय पइठो तब चरणे मेरु कंपायो रे / / 2 / / प्र० / त्रीस वरस गृहवास वसी प्रभु संयम शुद्ध सुहायो। दुःकर तप जप कष्ट क्रिया करी केवल ज्ञान उपायो रे // 3 // प्र० / चरम जिणेसर शासन नायक तुं जिनजी मनि भायो / वरस बिहुत्तर आयु प्रतिपाली परमाणंद पायो रे / / 4 / / प्र० / श्री नयविजय कविराज विराजइ श्री जस विजय वाचक छाजइ / सेवक तत्त्व विजय इम जंपइ नित नित नवल दिवाजइरे ||5|| प्र० / / इति श्री वीरजिन गीतं / 24 / मुनि भावविजयनी पति छै। सही 108 / छ / शुभं भवतुः / श्रीः /