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मानयो हो प्रभु मानयो साचुं एह ,
मनसुं हो प्रभु मनसुं मिलन ज मई कर्यु जी । कपटइं हो प्रभु कपटइं मिलइ जेह ,
तेहसुं हो प्रभु तेहसुं कीजइ आंतरं जी ॥ ३ ॥ दिल भरि हो प्रभु दिलभरि हुइ नेह ,
उत्तम हो प्रभु उत्तम रीति ते सहु कहइ जी। मत दियो हो प्रभु मत दियो तुम्ह छेह ,
अवगुण हो प्रभु अवगुण मोटा सांसहइ जी ॥ ४ ।। जिनजी हो प्रभु जिनजी तुं दीनदयाल ,
सेवा हो प्रभु सेवा अब सफली करोजी । कीजइ हो प्रभु कीजइ सुख सुगाल ,
संपति हो प्रभु संपति तत्त्व विजय करोजी ॥५॥
। इति श्री चंद्रप्रभ जिन गीतं ।।।
( ए अजुआली रातडी रे आसो आसिक मास मनना मान्या... ए देशी ) सुविधि जिणंद स्युं गोठडी रे मुझ मनि खरिय सुहाय मनना व्हाला । अंतर चितनी वारता रे मन मिल्या विण न कहवाय म० ॥ १ ॥ वाल्हो वाल्हो जी जिणंद मुझ वाल्हो तूं तो मोहइ भविजन वृंद, म० आं०॥ जेहसुं मन मान्यु हुइ रे तेहसुं कइसी लाज म० | तेहसुं सरम जो कीजइ रे तो लाजइ विणसइ काज म० ।। २ ।। तुं साहिब मुझ सिर थकई रे कर्म करइ किम जोर म० । भांजओ मद हवई तेहनो रे जेहनो जगमा सोर म० ॥ ३ ॥
९. तेह पाठां ।
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