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( देशी रसीयानी) नेह भरिनि जरिं रे निरखो नाहला अलवेसर एक वार वाल्हेसर । श्री सुपासजी चतुर शिरोमणी दिओ दरिसन धरी प्यार प्राणेसर ||१|| नेह० ॥ इक तारी प्यारी तुझ मूरति सूरति वरणी न जाय जोगीसर। मोहई चित्तमां रे सुरनरनारिनां वली निरमोही कहेवाय कृपानिधि ॥२॥ नेह० ।। जे जेहना चित्त मांहिं जे वस्या तेहनें ते जीवन प्राण परमेसर । वेध वेलाई रे जे रहइं वेगला ते कहिई किम जाणि जीवनजी ।।३। नेह० ॥ गरीब निवाज कहवाओ छो तुम्हो तो करयो सेवक सार सोभागी । दुख दोहग दालिद्र दूरि करो निर्मल ज्ञान दातार दयाकर ॥४॥ नेह० ।। ठाकुर एकज मई तूंहि आदरयो में धरयो तुम्ह ही स्युं रंग रंगीला।। तत्त्व विजय प्रभुजीना ध्यान थी लहीइं ऋद्धि अभंग अमायी ॥५॥ नेह० ॥
। इति श्री सुपास जिन स्तवनं ७।
( छोडी हो प्रभु छोडी चल्यो वनवास... ए देशी ) चंद्रप्रभ हो प्रभु चंद्रप्रभ सुणि स्वामी ,
वीनती हो प्रभु वीनती माहरा मानतणी जी। जाणइ हो प्रभु जाणइ सयल तुं भाव ,
ज्ञानी हो प्रभु ज्ञानी तुं त्रिजग धणीजी ॥ १ ॥ प्रभुबिन हो प्रभु बिन कछु न सुहाइ ,
मीठी हो प्रभु मीठी वात ज ताहरी जी । अवर न हो प्रभु अवर न आवइ दाय ,
___ मोहिनी हो प्रभु मोहिनी छइ तुम्हसुं खरीजी ॥ २ ॥ ८. शीता हो प्रभु शीता पाठां. ।
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