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पुनर्जन्म सिद्धान्त: प्रमाणसिद्ध सत्यता ३८६
बौद्धदर्शन यद्यपि अनात्मवादी दर्शन माना जाता है और वह अनात्मवादी इस अर्थ में है कि उसने आत्मा को एक स्वतन्त्र मौलिक तत्त्व न मानकर संतति प्रवाह के रूप में उसका अस्तित्व स्वीकार किया है । फिर भी उसमें पुनजन्म सिद्धान्त को मान्यता दी गई है। इसीलिए त्रिपिटकों में यथाप्रसंग यत्र-तत्र स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, सद्गति-दुर्गति आदि शब्दों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है । जातक कथाओं से तो यह पूर्णरूपेण प्रमाणित हो जाता है कि पुनर्जन्म होता है और कर्म फलभोग भी निश्चित है। कर्मों के संस्कार से अधिवासित होकर रूप वेदना, विज्ञान, संज्ञा, संस्कार इन पंच स्कन्ध समूह रूप जीव संसृति में घूमता हुआ सुख-दुख भोगता है तथा स्वर्ग-नरकादि के सुख-दुख को भोगने के
लिए उन-उन लोकों में आ जाता है ।
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जैनदर्शन तो कर्म सिद्धान्तवादी है अतः उसके शास्त्रों में कर्म फलभोग के लिए पुनर्जन्म होने का स्पष्ट रूप से दिग्दर्शन कराया है। जैसे कि-
अत्थि मे आया उबवाइए से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी ।
- आचारांग १।१।१
यह मेरी आत्मा औपपातिक है, कर्मानुसार पुनर्जन्म ग्रहण करती है आत्मा के पुनर्जन्म सम्बन्धी सिद्धान्त को स्वीकार करने वाला ही वस्तुतः आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है ।
यह जीवात्मा अनेकवार उच्च गोत्र में और अनेकबार नीच गोत्र में जन्म ले चुकी है-से असई उच्चागोए असई नीआगोए (आचारांग १ | २|३) मायावी और प्रमादी बार-बार गर्भ में अवतरित होता है और जन्म-मरण करता है -- माई पमाई पुण एक गब्र्भ --- आचारांग १|३|१७|
इस प्रकार सभी पौर्वात्य दर्शनों और धर्मों ने आत्मा के अमरत्व, अस्तित्व और पुनर्जन्म के बारे में अपनेअपने दृष्टिकोण के अनुसार आस्था व्यक्त करते हुए समर्थन किया है। लेकिन इसके विपरीत पाश्चात्य दर्शनों में एक जन्मवाद को स्वीकार करके भी किसी न किसी रूप में पुनर्जन्म की मान्यता को भी स्थान दिया है ।
इस्लाम, ईसाई और यहूदी मत एक जन्म-वादी हैं । इनका सामूहिक नाम सेमिटिक है। उनकी ताएँ इस प्रकार हैं
यहूदी पुराण या शास्त्र में परलोक का कोई उल्लेख नहीं है । इस जन्म के कृतकर्मों का फलभोग इसी जन्म में होता है। यहूदी मत के अनुसार भविष्य में ईश्वर प्रेरित व्रत मसीहा पृथ्वी पर आयेंगे। ईसाइयों के मतानुसार वह मसीहा ईसा हैं, वे ईश्वर के पुत्र हैं, और पृथ्वी पर अवतीर्ण हो गये हैं । इस्लाम के मत से मुहम्मद ईश्वर केत है।
कुछ विशेष
ईसाई और इस्लाम के मत से आत्मा और देह का सम्बन्ध प्रायः अविच्छेद्य है । इसीलिए मिस्र देशवासी 'ममी' का अनुसरण करके मृत देह का दाह न करके शव देह को उपयुक्त आकार की शव पेटिका में सुरक्षित कर उसे भूमि में दफना देते हैं । ये देह सुदूर भविष्यत् काल में अन्तिम विचार के दिन ईश्वर के सिहासन के दोनों ओर उठकर खड़े हो जायेंगे । उनमें से दाहिनी ओर रहेंगे धर्मात्मा और बायीं ओर रहेंगे पापात्मा ।
मनुष्य जाति के पुरुषों के अलावा अन्य किसी जीव की यहाँ तक कि नारी की भी आत्मा नहीं होती है । मनुष्य का इस लोक में केवल एक बार जन्म होता है । सर्वव्यापी ब्रह्म की कोई कल्पना भी नहीं है । यहूदी के 'यहोवा' ईसाई के 'गॉड' और इस्लाम के 'अल्लाह' ईश्वर हैं। वे पुरुष हैं और स्वर्ग में रहते हैं । उनका अवतार नहीं होता है । स्वर्ग में और कोई देवता नहीं है और न देवी है।
सेमिटिक धर्म-ग्रन्थों के अनुसार अनुमानतः ४००४ ई० पूर्व अर्थात् केवल छह हजार वर्ष पहले जगत की
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सृष्टि हुई थी।
इन सेमिटिक मतों की इस प्रकार की मान्यताएं है। अतएव इनमें पुर्तग्म के विचारों को नहीं होना चाहिए था। लेकिन कुरान, बाईबिल आदि में कुछ ऐसे वर्णन हैं जो पुनर्जन्म को स्वीकार किये बिना युक्तिसंगत नहीं माने जा सकते हैं । उनमें आगत कथनों का सारांश इस प्रकार है
ईसाई मत --- बाइबिल में राजाओं की दूसरी पुस्तक पर्व २, आयत ८, १५ में वर्णन है कि एलियाह नवी की आत्मा मरने के बाद एलोशा में आ गई। इसी प्रकार मलकी पर्व ४ आयत ४, ५, ६ में परमेश्वर द्वारा इसी एलियाह नवी को भेजने की बात कही गई है । मती पर्व ११ आयत १० - १३ में यूहन्ना वपतिस्मा देने वालों को ही पूर्वजन्म का एलियाह नवी बताया है।
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