Book Title: Pt Kesar Krut Stavan Author(s): Rasila Kadia Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ June-2003 गुरुनें मुखि तप जप लीधो, मासखमणनो पारणो कीधो पारणानो दिवस ते आवें, साधु गोचरीइं सिधावें ॥२०॥ तिहांथी चाल्यो नगर दुयारी, कूया कं ( कां) ठे ऊभी घणी नारी ॥२१॥ दुहा कूया कांठे कामिनी, रूप निहाले जोड़ घडा वसें पुत्र पास्यो, मुनीवर दीठो तेह ||२२|| चालि ऋषि देखीने मनमें चिंत्यो, हुं तो कर्म घणें अति भेट्यो आंखडलिउं अति सारी, मुझ रूप निहालें अति भारी ||२३|| नवि पेंसु नगर दुयारी, भिक्षा लिउं वनह मझारी, सुत्तकार एक विहरावें, तिहां मृगलो भावना भावें ॥२४॥ दुहा भावना भावें मृगलो, नयणे नीर झरंत, मुनी विहरावत कर करी, जो हूं माणस हूंत ॥२५॥ चालि वली जो हूं मांणस हूंत, जीवदया जतन करंत, मुझ मिलतो शुद्ध अणगार, तो विहरावत पात्र विच्यार ॥ २६ ॥ इम चितें छें तिणे काल, तिहां वायो असराल, अधकापी भागी डालि तिहां पोहतो त्रिहूंनो काल ॥२७॥ 101 सुत्रकारें दांन ज दीधो, बलभद्र तप जप कीधो मृगले तिहां भावना भावी, पांचमा देवलोक तणा सुख पावी ||२८|| ए त्रिहूं प्रकारे धर्म ज कीधो, पांचमा देवलोक तणो सुख लीधो कर जोडी कवि इम बोलें, धर्म विना सगो कोई नहीं तोले ||२९|| Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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