Book Title: Pravachansara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 568
________________ परिशिष्ट : सैंतालीस नय व्यवहारनयेन बन्धकमोचकपरमाण्वन्तरसंयुज्यमानवियुज्यमानपरमाणुवद्बन्धमोक्षयोद्वैतानुवर्ति ।।४४।। निश्चयनयेन केवलबध्यमानमुच्यमानबन्धमोक्षोचितस्निग्धरुक्षत्वगुणपरिणतपरमाणुवद्बन्धमोक्षयोरद्वैतानुवर्ति ।। ४५ ।। यद्यपि इस बात को विगतनयों की चर्चा में अनेक बार स्पष्ट किया जा चुका है कि यहाँ भिन्न-भिन्न आत्माओं की बात नहीं है अपितु एक ही आत्मा में उक्त दो-दो के जोड़ेवाले नयों को घटित करना है, तथापि 'प्रधानता' शब्द का प्रयोग कर यहाँ क्रियानय और ज्ञाननय के प्रकरण में तो अतिरिक्त सावधानी बरती गई है। ५६३ यहाँ 'क्रिया' या 'अनुष्ठान' शब्द से शुद्धभाव के साथ रहनेवाला शुभभाव एवं तदनुसार आचरण अपेक्षित है तथा 'विवेक' शब्द से शुद्धभाव अर्थात् निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र अपेक्षित है। उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि जब भगवान आत्मा साधकदशा में होता है, तब उसके भूमिकानुसार निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप वीतरागभाव भी होता है और शुभभावरूप रागभाव भी रहता तथा उसका आचरण भी भूमिकानुसार होता ही है । मुक्ति की प्राप्ति के कारणों के संदर्भ में जब नयविभाग से चर्चा होती है तो कहा जाता है कि ज्ञाननय से मुक्ति की प्राप्ति विवेक ( रत्नत्रयरूप वीतरागभाव) की प्रधानता से होती है और क्रियानय से अनुष्ठान (महाव्रतादि के शुभभाव एवं महाव्रतादि के पालनरूप क्रिया) की प्रधानता से होती है। तात्पर्य यह है कि मुक्ति के मार्ग में उपस्थिति तो दोनों कारणों की अनिवार्य रूप से होती है, पर ज्ञाननय से विवेक को प्रधानता प्राप्त है और क्रियानय से अनुष्ठान को प्रधानता प्राप्त है ||४२-४३ ॥ ज्ञाननय और क्रियानय की चर्चा के उपरान्त अब व्यवहारनय और निश्चयनय की चर्चा करते हैं - - “आत्मद्रव्य व्यवहारनय से अन्य परमाणु के साथ बँधनेवाले एवं उससे छूटनेवाले परमाणु के समान बंध और मोक्ष में द्वैत का अनुसरण करनेवाला है और निश्चयनय से बंध और मोक्ष के योग्य स्निग्ध और रूक्ष गुणरूप से परिणत बध्यमान और मुच्यमान परमाणु के समान बंध और मोक्ष में अद्वैत का अनुसरण करनेवाला है । ।४४-४५ । । ” कोई भी पुद्गलपरमाणु जब बँधता या छूटता है तो उसमें अन्य पुद्गल-परमाणुओं की

Loading...

Page Navigation
1 ... 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585