Book Title: Pratikraman Vishyak Tattvik Prashnottar Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 4
________________ 313 |15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी की मंदता का विचार करके, गुरुजनों आदि से समाधान प्राप्त कर ऐसी शंकाओं को दूर करना चाहिए। प्रश्न पाप किसे कहते हैं? उत्तर जो आत्मा को मलिन करे, उसे पाप कहते हैं। जो अशुभ योग से सुखपूर्वक बाँधा जाता है और दुःखपूर्वक भोगा जाता है, वह पाप है। पाप अशुभ प्रकृतिरूप है, पाप का फल कड़वा, कठोर और अप्रिय होता है। पाप के मुख्य अठारह भेद हैं। प्रश्न पापों अथवा दुर्व्यसनों का सेवन करने से इस भव, परभव में क्या-क्या हानियाँ होती हैं? उत्तर १. पापों अथवा दुर्व्यसनों का सेवन करने से शरीर नष्ट हो जाता है, प्राणी को तरह-तरह के रोग घेर लेते हैं। २. स्वभाव बिगड़ जाता है। ३. घर में स्त्री-पुत्रों की दुर्दशा हो जाती है। ४. व्यापार चौपट हो जाता है। ५. धन का सफाया हो जाता है। ६. मकान-दुकान नीलाम हो जाते हैं। ७. प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है। ८. राज्य द्वारा दण्डित होते हैं। ९. कारागृह में जीवन बिताना पड़ता है। १०. फांसी पर लटकना पड़ सकता है। ११. आत्मघात करना पड़ता है। इस तरह अनेक प्रकार की हानियाँ इस भव में होती हैं। परभव में भी वह नरक, निगोद आदि में उत्पन्न होता है। वहाँ उसे बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। कदाचित् मनुष्य बन भी जाय तो हीन जाति-कुल में जन्म लेता है। अशक्त, रोगी, हीनांग, नपुंसक और कुरूप बनता है। वह मूर्ख, निर्धन, शासित और दुर्भागी रहता है। अतः पापों अथवा दुर्व्यसनों का त्याग करना ही श्रेष्ठ है। मिथ्यादर्शन शल्य क्या है? उत्तर जिनेश्वर भगवन्तों द्वारा प्ररूपित सत्य पर श्रद्धा न रखना एवं असत्य का कदाग्रह रखना मिथ्यादर्शन शल्य है। यह शल्य सम्यग्दर्शन का घातक है। निदानशल्य किसे कहते हैं? उत्तर धर्माचरण के द्वारा सांसारिक फल की कामना करना, भोगों की लालसा रखना अर्थात् धर्मकरणी का फल भोगों के रूप में प्राप्त करने हेतु अपने जप-तप-संयम को दाव पर लगा देना 'निदानशल्य' कहलाता है। प्रश्न संज्ञा किसे कहते हैं? उत्तर चारित्र मोहनीय कर्मोदय की प्रबलता से होने वाली अभिलाषा, इच्छा ‘संज्ञा' कहलाती है। आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा व परिग्रह संज्ञा के रूप में ये चार प्रकार की होती हैं। विकथा किसे कहते हैं? उत्तर संयम-जीवन को दूषित करने वाली कथा को 'विकथा' कहते हैं। स्त्री कथा, भक्त कथा, देशकथा और राज कथा के भेद से विकथा चार प्रकार की होती हैं। प्रश्न प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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