Book Title: Pratikraman Vishyak Tattvik Prashnottar Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 310 प्रतिक्रमण विषयक तात्त्विक प्रश्नोत्तर श्री धर्मचन्द जैन प्रश्न प्रश्न प्रतिक्रमण का सार किस पाठ में आता है? कारण सहित स्पष्ट कीजिए। उत्तर प्रतिक्रमण का सार 'इच्छामि ठामि पडिक्कमिउं' के पाठ में आता है। क्योंकि पूरे प्रतिक्रमण में ज्ञान, दर्शन, चारित्राचारित्र तथा तप के अतिचारों की आलोचना की जाती है। इच्छामि ठामि में भी इनकी संक्षिप्त आलोचना हो जाती है, इस कारण इसे प्रतिक्रमण का सार पाठ कहा जाता है। प्रतिक्रमण करने से क्या-क्या लाभ हैं? उत्तर १. लगे दोषों की निवृत्ति होती है। २. प्रवचन माता की आराधना होती है। ३. तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन होता है। ४. व्रतादि ग्रहण करने की भावना जगती है। ५. अपने दोषों की आलोचना करके व्यक्ति आराधक बन जाता है। ६. इससे सूत्र की स्वाध्याय होती है। ७. अशुभ कर्मों के बंधन से बचते हैं। पाँच प्रतिक्रमण मुख्य रूप से कौन से पाठ से होते हैं? मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण- अरिहंतो महदेवो, सण समकित के पाठ से। अव्रत का प्रतिक्रमण- पाँच महाव्रत और पाँच अणुव्रत से। प्रमाद का प्रतिक्रमण- आठवाँ व्रत और अठारह पापस्थान से। कषाय का प्रतिक्रमण- अठारह पापस्थान, क्षमापना-पाठ एवं इच्छामि ठामि से। अशुभयोग का प्रतिक्रमण- इच्छामि ठामि, अठारह पापस्थान, नवमें व्रत से। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय व अशुभ योग का प्रतिक्रमण किसने किया? उत्तर मिथ्यात्व का श्रेणिक राजा ने, अव्रत का परदेशी राजा ने, प्रमाद का शैलक राजर्षि ने, कषाय का चण्डकौशिक ने और अशुभयोग का प्रतिक्रमण प्रसन्नचन्द्र राजर्षि ने किया। प्रश्न व्रत और पच्चक्खाण में क्या अन्तर हैं? उत्तर व्रत- विधि रूप प्रतिज्ञा व्रत है। जैसे- मैं सामायिक करता हूँ। साधु के लिए ५ महाव्रत होते हैं। श्रावक के लिए १२ व्रत होते हैं। व्रत मात्र चारित्र में ही है, पच्चक्खाण चारित्र व तप में भी आते हैं। उत्तर प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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