Book Title: Pratikraman Sutra par Ek Prachin Pustak Sankshipta Parichay
Author(s): 
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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________________ 287 115,17 नवम्बर 2006|| जिनवाणी हैं जो नियत स्थान पर ही पढ़े जा सकते हैं।" "कालक्रम से अथवा रुचि के वैचित्र्य से या देशभेद से जो इस आवश्यक सूत्र में पाठ भेदादि यत्रतत्र उपलब्ध हैं उस भेद को मिटाने के लिये अजमेर के मुनि-सम्मेलन में यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि आवश्यक सूत्र के मूल पाठ एक होना चाहिये। जैसे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज में आवश्यक के बहुत से पाठ बढ़ गये हैं, इसी प्रकार श्वेताम्बर साधुमार्गीय शाखा में भी कतिपय गुजराती, मारवाड़ी आदि भाषा में भी पाठ देखने में आते हैं। जिससे आवश्यक एक मिश्रित भाषा में हो गया है, अतः मौलिक अर्द्धमागधी भाषा में आवश्यक सूत्र हो तो स्थानकवासी शाखा में एक प्रतिक्रमण हो सकता है।" “आनन्द का विषय है कि हमारे सुहृद्वर्य मरुस्थलीय आचार्यवर्य पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. ने इस काम को अपने हाथ में लिया। कतिपय प्राचीन आवश्यकों की प्रतियों के आधार से इस मौलिक आवश्यक सूत्र के शुद्ध पाठों का संग्रह कर जनता पर परमोपकार किया है। इस आवश्यक सूत्र में उत्तराध्ययन सूत्र के २९वें अध्ययन में आए हुए छः आवश्यक सूत्र पाठों के क्रम के अनुसार पाठ संग्रह है।" -नौरतन मेहता, सह सम्पादक-जिनवाणी घोड़ों का चौक, जोधपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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