Book Title: Pratikraman Katipay Pramukh Bindu
Author(s): Ranidan Bhansali
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 5
________________ 276 276 || जिनवाणी |15,17 नवम्बर 2006|| पच्चक्खाण यावज्जीवन के लिये लिए हों जैसे ब्रह्मचर्य, अस्तेय आदि उन्हें प्रतिदिन पच्चक्खाने और पालने की आवश्यकता नहीं है। * श्रावकों के 124 अतिचार कौन-कौन से हैं. 12 व्रतों के 75, सम्यक्त्व के 5, संलेखना के 5, ज्ञानाचार के 8, दर्शनाचार के 8, चारित्राचार के 8, तपाचार के 12, वीर्याचार के 3 इस तरह कुल 124 अतिचार भी होते हैं। * ज्ञान के 14 अतिचार में शुरू के 5 उच्चारण संबंधी, 6 से ८वें तक पढ़ने की अविधि संबंधी, बाकी 6 काल संबंधी हैं। * करण और योग की परिभाषा- क्रिया के साधन को करण कहते हैं। करण 3 हैं- करना, कराना और ___ अनुमोदन करना। योग- व्यापार रूप हैं, ये तीन हैं- मन, वचन और काया। *१२वें व्रत के अन्तर्गत जो 14 प्रकार की चीजें साधु-साध्वी को बहराते हैं उसमें से असण-पाण आदि 8 चीजें अप्रतिहारी हैं क्योंकि लेकर वापिस नहीं की जाती और पीठफलक आदि 6 प्रकार की चीजें प्रतिहारी हैं अर्थात् कार्य निष्पन्न होने पर वापिस की जाती है। * प्रतिक्रमण में 99 अतिचार के ध्यान में मात्र अतिचार नहीं बोलकर पूरा स्थूल का पाठ बोलना (ध्यानावस्था में) ज्यादा लाभ का कारण है। -भाइसा मार्केटिंग सिनेमा के पास, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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