Book Title: Pratikraman Katipay Pramukh Bindu Author(s): Ranidan Bhansali Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 272 प्रतिक्रमण : कतिपय प्रमुख बिन्दु श्री राणीदान भंसाली कषाय और योग के कारण आत्मा स्वस्थान (ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप) को छोड़कर अन्य स्थान में चली जाती है, उसे पुनः स्वस्थान में स्थित करना प्रतिक्रमण है। पापों से पीछे हटना प्रतिक्रमण है। 21 १२ अणुव्रतों में १ करण १ योग वाला व्रत चौथा, एक करण तीन योग वाला पाँचवाँ छठा, सातवाँ एवं दसवाँ, २ करण ३ योग वाले - १, २, ३, ६, ८, ९, १०, ११ एवं बिना करण योग का १२वाँ व्रत है। ४९ भांगों में से १ करण १ योग का भांगा तीसरा (करूँ नहीं कायसा) १ करण ३ योग का भांगा करूँ नहीं मन से वचन से काया से, १९वाँ भांगा। दो करण तीन योग का भांगा ४०वाँ करूँ नहीं कराऊँ नहींमन, वचन, काया से । १२ अणुव्रतों में यावज्जीवन १ से ८ तक, जावनियमं नवमाँ एवं जाव अहोरतं - १०वाँ ११ वाँ अणुव्रत है। सातवाँ । १२ अणुव्रतों में विरमण व्रत ६ हैं - १ से ५ और आठवाँ । परिमाण व्रत - छठा, 'पज्जुवासामि' शब्द मात्र ९वें और ग्यारहवें व्रत में है। क्योंकि पूर्ण सावद्य योग का त्याग इन दोनों व्रतों में है । 'पेयाला' शब्द मात्र पहले अणुव्रत में और दर्शन सम्यक्त्व के पाठ में आता है और उसका अर्थ 'प्रधान' है। प्रतिक्रमण (आवश्यक सूत्र ) के रचनाकार गणधर होते हैं और प्रतिक्रमण ३२ वाँ आगम आवश्यक सूत्र हैं। १२वें व्रत अतिथि संविभाग में साधु, साध्वी, प्रतिमाधारी श्रावक एवं भिक्षुदया वाले श्रावक आते हैं। श्रावक अनर्थदण्ड का त्याग ४ प्रकार से करता है- १. आर्त्तध्यान का त्याग २. प्रमाद-आचरण का त्याग ३. हिंसक पापों के साधन देने का त्याग ४. पाप कर्म करने के उपदेश देने का त्याग । Jain Education International श्रावक पौषध भी चार प्रकार के त्याग से करता है- १. आहार त्याग रूप २. कुशील के त्याग रूप ३. शरीर शृंगार त्याग रूप ४. सावद्ययोग त्याग रूप । - श्रावक के यावज्जीवन रात्रि भोजन का त्याग ७वें व्रत की कालाश्रित मर्यादा है और १-२ दिन का त्याग दसवें व्रत में है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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