Book Title: Pratham Jin Stotra Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसन्धान-५६ १. जयानन्दसूरिना नामे प्राप्त थती रचनाओमां देवाः प्रभोः स्तोत्र, नेमाड प्रवास गीतादि भक्तिप्रधान रचनाओ तपागच्छना जयानन्दसूरिनी छे. अन्य कोईपण जयानन्दसूरिनी आवी रचनाओ प्राप्त थती नथी.. २. तपा० जयानन्दसूरिजीना गुरुभाई देवसुन्दरसूरिना शिष्य सोमसुन्दरसूरिजीए सोपारकना जिनालयनो जीर्णोद्धार कराव्यो हतो. तेमज सोपारकादि तीर्थोना संघो तेमनी निश्रामां नीकळ्या हता. आ परथी तपागच्छीय परम्परानो आ क्षेत्र परनो प्रभाव जणाय छे. वळी आ वातनी साक्षी पूरती तपा. जिनसुन्दरसूरि आदि आचार्योना हाथे प्रतिष्ठित थयेल प्रतिमाओ आजे पण मळे छे. अन्य गच्छना जयानन्दसूरिजी माटे आवी कोइ दस्तावेजी सामग्री प्राप्त थती नथी. आ बन्ने कारणो ज कृतिकार जयानन्दसूरिजीने तपागच्छना होवानुं अनुमान करवा प्रेरे छे. आ तो अमे मात्र अमारा विचारने रजू को छे. विद्वानो आ अंगे वधु प्रकाश पाडशे एवी आशा छे. टीकाकारश्री सुभोग पाठक तेमज लिपिकार श्रीअमृतकुशल विशे कोइ विशेष माहिती प्राप्त थती नथी. धौर्यपुर पण तद्दन नर्बु ज गामनुं नाम जणाय छे. प्रस्तुत कृतिनी प्रत सम्पादनार्थे आपवा बदल नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि जैनभण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो तेमज प.पू.आ.श्री.विजयसोमचन्द्रसूरि म. सानो खूब खूब आभार. प्रथम जिन स्तोत्र ॥ए ॥ जयानन्दलक्ष्मीलसत्वल्लिकन्दं । सुराधीशसंसेव्यपादारविन्दम् ॥ स्फुरच्चारुचामीकरद्योतिदेहं युगाधीशमानौमि सौपारकेऽहम् ॥१॥ जय = इह लोके शक्तेरप्रतिहन[न]म्, आनन्दः = सर्वेन्द्रियाल्हादहेतुः, लक्ष्मीः = सम्पदा, एतत्त्रयरूपा लसन्ती वल्लिस्तस्याः कन्दं = मूलम् । पुनःPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7