Book Title: Prarambhik Jain Grantho me Bijganit
Author(s): Mukutbiharilal Agarwal
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 2
________________ भाग के सम्बन्ध में, महावीराचार्य ने 'गणितसारसंग्रह' में चिह्नों के बारे में निम्नलिखित नियम दिया है-"दो ऋणात्मक अथवा दो घनात्मक राशियाँ एक-दूसरे से भाजित होने पर घनात्मक राशि उत्पन्न करती हैं, परन्तु दो राशियाँ, जिनमें एक घनात्मक और दूसरी ऋणात्मक हो, एक-दूसरे से भाजित करने पर ऋणात्मक राशि उत्पन्न करती हैं।" वर्ग तथा वर्गमूल ज्ञात करते समय चिह्नों के विषय में आचार्य महावीर निम्नलिखित नियम का उल्लेख करते हैं"धनात्मक अथवा ऋणात्मक राशि का वर्ग घनात्मक होता है, तथा उस वर्ग राशि के वर्गमूल क्रमश: घनात्मक और ऋणात्मक होते हैं । चूंकि ऋणात्मक राशि देखने में ही अवर्ग है, इसलिए ऋणात्मक राशि का कोई वर्गमूल नहीं होता ।" समीकरण के प्रकार - समीकरणों को चार भागों में विभक्त किया गया है। (1) एक वर्ण समीकरण, जो केवल एकघातीय होते हैं। इन्हें 'यावत्-तावत्' भी कहते हैं। द्विघातीय समीकरण, जिन्हें वर्ग समीकरण कहते हैं। अनेक वर्ण समीकरण, जिनमें अनेक वर्षों का प्रयोग होता है । भावित समीकरण, जिसमें दो वर्णों के गुणन का प्रयोग होता है। एक वर्ण समीकरण- ऐसे समीकरणों को जैन साहित्य में यावत्-तावत्' के नाम से पुकारा है। अरब और योरोप के गणितज्ञों द्वारा इन सरल समीकरणों को 'Rule of false position' के नाम से सम्बोधित किया गया है। इस प्रकार के प्रश्न तथा हल करने की विधि का वर्णन 'बक्षालीगणित' में मिलता है। आर्यभट्ट प्रथम (499 ई०) ने भी इस प्रकार के प्रश्न हल करने का नियम दिया है जो इस प्रकार है "ज्ञात राशियों के अन्तर को अज्ञात राशि के गुणकों के अन्तर से भाग देने पर अज्ञात राशि का मान ज्ञात हो जाता है।" यथाax+c=bx+d aआचार्य महावीर ने भी 'गणितसारसंग्रह' में इस विधि पर अनेक उदाहरण एवं हल करने की विधि का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है ___ यदि किसी राशि काका का है और । काका का योग । है, तो बतलाओ कि वह अज्ञात राशि क्या है ? इस प्रकार के प्रश्न में अज्ञात राशि ज्ञात करने के लिए आचार्य ने निम्नलिखित नियम दिया है अज्ञात राशि के स्थान पर एक रखकर, प्रश्न के अनुसार फल ज्ञात करो और फिर प्राप्त फल से दिए हुए फल को भाग दो। इस प्रकार प्राप्त भजनफल ही अज्ञात संख्या का मान होगा। - - d| - | - | 1 का , काs d का 0 hanum-8-0- 5 अतः वह अज्ञात राशि है। 1. गणित-सारसंग्रह, अध्याय 1, गाथा 50 2. वही, मध्याय 1, गाथा 52 3. स्थानांग सूत्र, सूत्र 747 -4. आर्यभट्टीय 1,30 5. गणितसारसंग्रह, अध्याय 3, गाथा 108 6. वही, अध्याय 3, गाथा 107 आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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