Book Title: Prakrit aur Apbhramsa Jain Sahitya me Krishna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf

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Page 7
________________ प्राकृत एवं अपभ्रंश जैन साहित्य में कृष्ण : १०३ कृष्ण के जीवन प्रसंगों के सन्दर्भ में अधिक विस्तृत चर्चा करने वाले जैन आगम ग्रन्थों में अन्तकृतदशा महत्त्वपूर्ण है। यहां स्मरणीय है कि वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु पर्याप्त रूप से परिवर्तित हो गई है, क्योंकि अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु के सन्दर्भ में स्थानांग, समवायांग, नन्दीसूत्र, तत्त्वार्थराजवार्तिक, समवायांगवृत्ति, नन्दीचूर्णि एवं अंगप्रज्ञप्ति में जो उल्लेख हैं, उनमें परस्पर भिन्नता है और अन्तकृत्दशा की वर्तमान विषयवस्तु से पूर्णत: मेल नहीं खाते। अन्तकृत्दशा में कृष्ण और उनके परिजनों का उल्लेखयुक्त जो विवरण उपलब्ध हुआ है वह ईसा की छठी शताब्दी से अधिक परवर्ती नहीं माना जा सकता। क्योंकि नन्दीसूत्र में अन्तकृत्दशा के आठ वर्गों के और नन्दीचूर्णि में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन होने का उल्लेख है जो कि वर्तमान अन्तकृत्दशा के विषयवस्तु से समानता रखता है। समवायांगवृत्ति में भी इसके वर्तमान स्वरूप का उल्लेख प्राप्त हो जाता है। अतः नन्दी, नन्दीचूर्णि और समवायांगवृत्ति के पूर्व ही इसको यह स्वरूप प्राप्त हो गया था । ऐसी स्थिति में इसे छठी या सातवीं शताब्दी से अधिक परवर्ती नहीं कहा जा सकता। अन्तकृत्दशा के आठ वर्गों में प्रथम पांच वर्ग और उनके उनपचास अध्ययन श्रीकृष्ण और उनके परिजनों से सम्बन्धित हैं। प्रथम वर्ग में गौतम, समद्रसागर, अक्षोभ आदि दस व्यक्तियों का वर्णन है। इन सबके पिता अन्धकवृष्णि और माता धारिणी बताये गए हैं। अन्धकवृष्णि कृष्ण के दादा होते हैं। अत: इस आधार पर ये सभी कृष्ण के चाचा कहे जा सकते हैं। दूसरे वर्ग में आठ अध्याय हैं। उनमें से सागर, समुद्र, अचल और अक्षोभ ये चार नाम पूर्व वर्ग में भी आये हैं। शेष चार नाम हिमवन्त, धरण, पूर्ण और अभिचन्द नवीन हैं। इन्हें भी अन्धकवृष्णि का पुत्र कहा गया है। इस प्रकार ये सभी कृष्ण के चाचा माने जा सकते हैं । इन दोनों वर्गों में केवल इन सबके अरिष्टनेमि के पास दीक्षित होकर तप साधना करने का उल्लेख है। अन्य कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। तृतीय वर्ग में तेरह अध्ययन हैं। इन अध्ययनों में से प्रथम छ: अध्ययन अनियसेन, अनन्तसेन, अनहित, विद्धत, देवयश ओर शत्रुसेन से सम्बन्धित हैं। ये सभी कुमार भद्दिलपुर निवासी सुलसा नामक गाथा पत्नी के पुत्र कहे गये हैं। किन्तु इसी वर्ग के आठवें अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये सभी सुलसा के पालित पुत्र थे। वस्तुत: ये सभी देवकी और वसुदेव के ही पुत्र हैं। इस प्रकार श्रीकृष्ण के सहोदर थे। इनका पालनपोषण क्यों और किसप्रकार सुलसा के द्वारा हुआ यह चर्चा हम बाद में गजसुकुमाल की कथा के प्रसंग में करेंगे। इन छहों के अतिरिक्त कृष्ण के अन्य सहोदर गजसुकुमाल का भी विस्तृत वर्णन इस वर्ग में है। गजसुकुमाल के जीवनवृत्त की चर्चा हम आगे स्वतंत्र रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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