Book Title: Prakrit aur Apbhramsa Jain Sahitya me Krishna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf
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________________ 110 किया गया है। जैन परम्परा के अनुसार द्वारका और यादव वंश के विनाश की भविष्यवाणी सुनकर श्रीकृष्ण यह घोषणा करवाते हैं कि जो भी व्यक्ति अरिष्टनेमि के पास दीक्षित होगा उसके परिवार के पालन-पोषण की व्यवस्था राज्य करेगा। इसी प्रसंग में कृष्ण के द्वारा अपनी आठों पत्नियों, पुत्रवधुओं आदि को अरिष्टनेमि के पास दीक्षित करवाने के भी उल्लेख मिलते हैं। जहां तक श्रीकृष्ण की मृत्यु (लीला संहरण) का प्रश्न है दोनों ही परम्पराएँ जराकुमार के बाण से उनकी मृत्यु का होना स्वीकार करती हैं। किन्तु जहां वैष्णव परम्परा के अनुसार वे नित्यमुक्त हैं और अपनी लीला का संहरण कर गोलोक में निवास करने लगते हैं वहां जैन परम्परा के अनुसार वे अपनी मृत्यु के पश्चात् भविष्य में आगामी उत्सर्पिणी में भरतक्षेत्र में १२वें अमम नामक तीर्थकर होकर मुक्ति को प्राप्त करेंगे - ऐसा उल्लेख है। इस प्रकार दोनों परम्पराएँ यद्यपि कृष्ण के जीवनवृत्त को अपने विवेचन का आधार बनाती हैं, फिर भी दोनों ने उसे अपने-अपने अनुसार मोड़ने का प्रयास किया है। जैसा कि हमने संकेत किया है कि श्रीकृष्णा के जीवन में ऐसी अनेक घटनाएँ है जिनका विवरण हमें जैन ग्रन्थों में ही मिलता है, पौराणिक साहित्य में नहीं मिलता। श्री कृष्ण के पद्मोत्तर से हुए युद्ध के वर्णन तथा गजसुकुमाल के जीवन की घटना, उनका नेमिनाथ के साथ सम्बन्ध आदि ऐसी घटनाएँ हैं जिनका उल्लेख हिन्दू परम्परा में या तो नहीं है या बहुत अल्प है। जबकि जैन परम्परा में इनका विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार कृष्ण के सम्बन्ध में जैन कथानकों का अपना वैशिष्ट्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org