Book Title: Prakrit Vibhinna Bhed aur Lakshan Author(s): Subhash Kothari Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 8
________________ प्राकृत : विभिन्न भेद और लक्षण 476 (4) ऐ का प्रयोग महाराष्ट्री में नहीं होता / उसकी जगह सामान्यत: ह एवं विशेषण अइ होता है जैसे शैल = सैल, ऐरावण =एराबण, सैन्य-सैण्ण, दैन्य-देइण्ण / (5) कितने ही शब्दों के प्रयोगानुसार पहले, दूसरे व तीसरे वर्ण पर अनुसार का आगम होता है / अश्रु असु, असु, त्रस्कम तसं तसं आदि। (6) आदि के स्थान पर ज होता। (7) अनेक स्थानों पर र का ल होता है। (8) ष्प और स्प के स्थान पर फ आदेश होता है। (8) अकारान्त पुल्लिग एकवचन ओ प्रत्यय होता है, पंचमी से एकवचन में तो, ओ, उ, हि और विभक्तिचिह्न का लोप भी होता है व पंचनी बहुवचन में हिन्तों व सुन्तों प्रत्यय जोड़े जा सकते हैं। (10) भविष्यत्कााल के प्रत्ययों के पहले हि होता है। (11) वर्तमान, भविष्य, भूत व आज्ञार्थक प्रत्ययों के स्थान में ज्ज और ज्वा प्रत्यय भी होते हैं। (12) ति व ते प्रत्ययों में त का लोप होता है। (13) भाव कर्म में इअ और इज्ज प्रत्यय होते हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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