Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 6
________________ संपादकीय तुलसीमंजरी युवाचार्यं श्री महाप्रज्ञ की कृति है । इसका रचना काल विक्रम संवत् १९६८ ( सन् १९४९) है । इसका प्रणयन कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य विरचित प्राकृत व्याकरण के आधर पर बृहत् प्रक्रिया के रूप में हुआ है । ० प्राकृत वाक्यरचना बोध तुलसीमंजरी का ही विकसित रूप है । नवीन पद्धति से इसका संपादन किया गया है । • प्राकृत वाक्यरचना बोध में ११८ पाठ हैं । • इसमें प्राकृत व्याकरण के १११४ सूत्र नियम के नाम से दिए गए हैं । नियम मूलसूत्र, हिन्दी अनुवाद तथा उदाहरण सहित हैं । कहीं-कहीं टिप्पण देकर सूत्र के उदाहरणों को स्पष्ट किया गया है । • नियम के अन्तर्गत उदाहरणों की संस्कृत छाया दी है, जिससे अर्थ बोध सरलता से हो जाता है । ० शब्द संग्रह में शब्द दिए गए हैं। सातवें पाठ से लेकर निन्नानवें पाठ तक शब्दों को वर्ग के रूप में दिया गया है। उससे आगे उन्नीस पाठों में अनुवाद हेतु आवश्यक शब्दों को अर्थ रूप में दिया गया है । • एक पाठ में एक ही वर्ग के शब्द दिए गए हैं, जिससे विद्यार्थियों को शब्दों को खोजने में सुविधा होगी । एक वर्ग में अधिक शब्द होने के कारण कहीं-कहीं उन्हें दो, तीन, चार और पांच पाठों तक भी दिए गए हैं । ५४ वर्ग के शब्द ८१ पाठों में हैं । o o ० बीच-बीच में स्फुट शब्दों का संकलन है | वर्ग के शब्दों के अतिरिक्त वाक्य बनाने में आवश्यक शब्दों को वर्ग के नीचे विभाजित कर दिया गया है । • कुछ शब्द प्राकृत शब्दकोश ( पाइअसदम हण्णव ) में नहीं है । अनुभव होती है, उनको संस्कृत के व्यवहार में उनकी आवश्यकता शब्दकोश से लिया गया है। ० • वृक्ष, फल, औषधि, शाक, धान्य, लता, सुगंधित पौधे आदि वर्ग निघंटु से लिए गए हैं । • जो शब्द संस्कृत शब्द कोश से लिए हैं, उन शब्दों के आगे कोष्ठक में ( सं ) उल्लिखित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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