Book Title: Prakrit Sahitya ki Vividhta aur Vishalta Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 3
________________ प्राकृत साहित्य की विविधता और विशालता RAA (ana CCIDHI प्रकरण, नाना वृत्तक प्रकरण और बालबोध प्रकरण को भी हिन्दी अनुवाद सहित हमारे "अभय जैनग्रन्थालय" से प्रकाशित करवाया है। ठाकूर फेरू के 'धातोत्पति' 'द्रव्य-परीक्षा' और 'रत्न-परीक्षा' का भी उसने हिन्दी अनुवाद किया है। इनमें से 'रत्न-परीक्षा' तो हमारे "अभय जैन ग्रंथालय" से प्रकाशित हो चुकी है। 'धातोत्पति' यू. पी. हिस्टोरिकल जर्नल में सानुवाद डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल के द्वारा प्रकाशित करवा दी है । 'द्रव्य-परीक्षा' सानुवाद टिप्पणी लिखने के लिए डॉ० दशरथ शर्मा को दी हुई है । इसी तरह कांगड़ा राजवंश सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण रचना का भी भंवरलाल ने अनुवाद किया है। उस पर ऐतिहासिक टिप्पणियाँ डॉ० दशरथ शर्मा लिख देंगे, तब प्रकाशित की जायेगी। ___ अनुपलब्ध प्राकृत रचनाएँ—प्राकृत का बहुत-सा साहित्य अब अनुपलब्ध है। उदाहरणार्थरथानांगसूत्र में दश दशाओं के नाम व भेद मिलते हैं। उनमें से बहुत से ग्रन्थ अब प्राप्त नहीं हैं। इसी प्रकार नन्दीसूत्र में सम्यग् सूत्र और मिथ्या सूत्र के अन्तर्गत जिन सूत्रों के नाम मिलते हैं उनमें भी कई ग्रन्थ अब नहीं मिलते हैं । जैसे—महाकल्प महापन्नवणा, विज्जाचारण, विणिच्छओ, आयविसोही, खुड्डिआविमाणपविभती, महल्लिया विमाण विभती, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, विवाह-चूलिया अयणोववाए, वसणोववाए, गुयलोववाए, धरणोववाए, बेसमोववाए, वेलधरोववाए, देविंदोववाए, उदाणसुयं, समुट्ठाणसुयं, नागपरियावणियाओ, आसीविसभावणाणं, दिट्ठिविसभावणाणं, सुमिणभावणाणं, महासुमिणभावणाणं, तेयग्गिनिसग्गाणं । पाक्षिक सूत्र में भी इनका उल्लेख मिलता है। व्यवहार सूत्र आदि में भी जिन आगम ग्रन्थों का उल्लेख है, उनमें से भी कुछ प्राप्त नहीं हैं । प्राकृत भाषा के कई सुन्दर कथा-ग्रन्थ जिनका उल्लेख मिलता है, अब नहीं मिलते। उदाहरणार्थपादलिप्तसूरि की 'तरंगवई कहा' तथा विशेषावश्यक भाष्य आदि में उल्लिखित 'नरवाहनयताकहा', मगधसेणा, मलयवती । इसी तरह ११वीं शताब्दी के जिनेश्वरसूरि की 'लीलावई-कहा' भी प्राप्त नहीं है। कई ग्रन्थ प्राचीन ग्रन्थों के नाम वाले मिलते हैं पर वे पीछे के रचे हुए हैं जिस प्रकार 'जोणीपाहुड़' । प्राचीन ग्रंथ का उल्लेख मिलता है, पर वह अप्राप्त है । प्रश्नश्रमण के रचित योनिपाहुड़ की भी एक मात्र अपूर्ण प्रति भाण्डारकर ओरियण्टल इन्स्टीटूट, पूना में सम्वत् १५८२ की लिखी हुई है। इसकी दूसरी प्रति की खोज करके उसे सम्पादित करके प्रकाशित करना चाहिए। प्रश्नव्याकरण सूत्र भी अब मूल रूप में प्राप्त नहीं है, जिसका कि विवरण समवायांग और नन्दी सूत्र में मिलता है। इसी तरह के नाम वाला एक सूत्र नेपाल की राजकीय लाइब्रेरी में है । मैंने इसकी नकल प्राप्त करने के लिए प्रेरणा की थी और तेरापन्थी मुनिश्री नथमल जी के कथनानुसार रतनगढ़ के श्री रामलाल जी गोलछा जो नेपाल के बहुत बड़े जैन व्यापारी हैं, उन्होंने नकल करवा के मैंगवा भी ली है। पर अभी तक वह देखने में नहीं आई अतः पाटण और जैसलमेर भण्डार में प्राप्त जयपाहुड़ और प्रश्नव्याकरण से वह कितनी भिन्नता रखता है ? यह बिना मिलान किये नहीं कहा जा सकता। पंजाब के जैन भण्डारों का अब रूपनगर दिल्ली के श्वेताम्बर जैन मन्दिर में अच्छा संग्रह हो गया है, उनमें शोध करने पर मुझे एक अज्ञात बिन्दूदिशासूत्र की प्रति प्राप्त हुई है। फिर इसकी एक और प्रति विनयचन्द्र ज्ञान-भण्डार जयपुर में भी मिली है। मैंने इस अज्ञात सूत्र के सम्बन्ध में श्रमण के HEL PC PN maramandarmeramarinaKNOWASABALAJAJARimacmaidaanadaaraamaanMADrawANAMAAJHALALASARAMPALAMAama आपापभिसापावर आभार श्रीआनन्दसन्धाश्रीआनन्दसन्धान VARAwamir Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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