Book Title: Prakrit Sahitya ki Vividhta aur Vishalta Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 2
________________ NROENITI, +OP . ६४ प्राकृत भाषा और साहित्य DATE नाटक इसके प्रमाण हैं। शिला-लेखों में भी बहत से लेख प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण मिलते हैं। इससे प्राकृत भाषा के कई रूपों और विकास की अच्छी जानकारी मिल जाती है। यद्यपि प्राकृत में साहित्यरचना की परम्परा जैसी जैनों में रही, वैसी अन्य किसी धर्म-सम्प्रदाय या समाज में नहीं रही, पर जनेतर विद्वानों ने भी प्राकृत भाषा के व्याकरण बनाये हैं और कुछ काव्यादि रचनाएँ भी उनकी मिलती हैं। इससे सिद्ध होता है कि संस्कृत का प्रभाव बढ़ जाने पर भी प्राकुत सर्वथा उपेक्षित नहीं हुई और जैनेतर लेखक भी इसे अपनाते रहे। प्राकृत साहित्य विविध प्रकार का और बहुत ही विशाल है। अभी तक बहुत-सी छोटी-छोटी रचनाओं की तो पूरी जानकारी भी प्रकाश में नहीं आयी है । वास्तव में छोटी होने पर भी ये रचनाएँ उपेक्षित नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इनमें से कई तो बहुत ही सारगर्भित और प्रेरणादायी हैं। बड़े-बड़े ग्रन्थों में जो बातें विस्तार से पायी जाती हैं, उनमें से जरूरी और काम की बातें छोटे-छोटे प्रकरण-ग्रन्थों और कुलकों आदि में गूंथ ली गई हैं । उनका उद्देश्य यही था कि बड़े-बड़े ग्रन्थ याद नहीं रखे जा सकते और छोटे ग्रन्थों या प्रकरणों को याद कर लेना सुगम होगा, अतः सारभूत बातें बतलाने व समझाने में सुविधा रहेगी। ऐसे बहुत से प्रकरण और कुलक अभी तक अप्रकाशित हैं। उनका संग्रह एव प्रकाशन बहुत ही जरूरी है- अन्यथा कुछ समय के बाद वे अप्राप्त हो जायेंगे। ऐसी रचनाएँ फुटकर पत्रों और संग्रह प्रतियों में पाई जाती हैं। हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची बनाते समय भी उनकी उपेक्षा कर दी जाती है। पर संग्रह प्रतियाँ और गुटकों की भी पूरी सूची बनानी चाहिए, जिससे प्रसिद्ध रचनाओं के अतिरिक्त अप्रकाशित एवं अज्ञात रचनाएँ कौन-सी हैं ? इसका ठीक से पता चल सके । प्राकृत भाषा का स्तोत्र-साहित्य' भी उल्लेखनीय है, अतः प्रकरणों, कूलकों, स्तोत्रों, सुभाषित पद्यों के स्वतन्त्र संग्रह-ग्रन्थ प्रकाशित होने चाहिए । मैंने जैन कुलकों की एक सूची अपने लेख में प्रकाशित की थी, उसमें शताधिक कुलकों की सूची दी गई थी। प्राकृत जैन-साहित्य को कई भेदों में विभक्त किया जा सकता है । जैसे—आगमिका, अंग-उपांग, छन्द, सूत्र-मूल आदि तो प्रसिद्ध हैं । दार्शनिक साहित्य में सम्मतिप्रकरण आदि अनेक ग्रन्थ हैं । औपदेशिक साहित्य में 'उपदेश माला' जैसे ग्रन्थों की एक लम्बी परम्परा है। प्रकरण साहित्य म जीव-विचार, नवतत्व, दण्डक, क्षेत्र समास, संघयणी, कर्मग्रन्थ आदि सैकड़ों प्रकरण ग्रन्थ हैं। महापुरुषों स सम्बन्धित सैकड़ों चरित काव्य प्राप्त हैं। कथाग्रन्थ गद्य और पद्य में हैं। सैकड़ों छोटी-बड़ी कथाएँ स्वतन्त्र रूप से और टीकाओं आदि में पाई जाती हैं। सर्वजनोपयोगी साहित्य में व्याकरण, छन्द, कोष, अलंकार आदि काव्यशास्त्रीय ग्रन्थो का समावेश होता है । प्राकृत के कई कोष एवं छन्द ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है । 'पाइय लच्छी नाममाला' और 'जयदामन छन्द' प्रसिद्ध हैं। अलंकार का एकमात्र ग्रन्थ 'अलकार दप्पण' जैसलमर भण्डार की ताड़पत्रीय प्रति में मिला था, जिसे मेरे भतीजे भंवरलाल ने हिन्दी अनुवाद के साथ मरुधरकेसरी अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित करवा दिया है। भंवरलाल ने प्राकृत में कुछ पद्यों की रचना भी की है और जीवदया desi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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