Book Title: Prakrit Bhasha ka Vyakaran Parivar Author(s): Dharmashila Mahasati Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 8
________________ प्राकृत भाषा का व्याकरण परिवार ५३ चा श्री मार्कण्डेय कवीन्द्र ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही वररुचि, शाकल्य, भरत, कोहल, भामह और वसन्तराज इत्यादि का नामोल्लेख किया है। भाषा के १६ भेद बताये हैं। भाषा, विभाषा के ज्ञान के लिए यह व्याकरण अत्यन्त उपयोगी है। (8) षड्भाषाचन्द्रिका-श्री लक्ष्मीधर ने षड्भाषाचन्द्रिका में प्राकृत का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इसमें प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, अपभ्रंश इत्यादि छह भाषाओं पर विस्तारपूर्वक विवेचन किया है, इसलिए इस ग्रन्थ का नाम षड्भाषाचन्द्रिका है। इस व्याकरण की तुलना भट्टोजिदीक्षित की सिद्धान्तकौमुदी के साथ कर सकते हैं। याने सिद्धान्तकौमुदी का क्रम इसमें है । उदाहरण सेतुबन्ध, गउडवहो, गाहासत्तसई, कप्पूरमंजरी आदि ग्रन्थों से दिये गये हैं । लक्ष्मीधर ने लिखा है "वृत्ति त्रैविक्रमीगूढां व्याचिख्यासन्ति ये बुधाः ।। षड्भाषाचन्द्रिका तैस्तद् व्याख्यारूपा विलोक्यताम् ॥" याने जो विद्वान त्रिविक्रम की गूढ़वत्ति को समझना और समझाना चाहते हैं, वे उसकी व्याख्यारूप षड्भाषाचन्द्रिका को देखें। प्राकृत भाषा की जानकारी प्राप्त करने के लिए षड्भाषाचन्द्रिका अधिक उपयोगी है। इस व्याकरण में शब्दों के रूप तथा धातुओं के रूप पूर्ण विस्तृत रूप से लिखे गये हैं। इसमें देशी शब्दों का भी समावेश किया गया है । लक्ष्मीधर का समय त्रिविक्रमदेव के बाद का माना जाता है। क्योंकि षड्भाषाचन्द्रिका में लक्ष्मीधर ने त्रिविक्रम का उल्लेख किया है। त्रिविक्रमदेव, लक्ष्मीधर और सिंहधर इन तीनों ने सूत्रों की संकलना एक समान ही की है। लक्ष्मीधर के प्रारम्भ के श्लोक से लगता है कि-उनकी टीका त्रिविक्रम की वृत्ति पर आधारित है, उस टीका पर की यह टीका है ऐसा लगता है। इन मुख्य व्याकरणों के अतिरिक्त अन्य अनेक प्राकृत व्याकरण हैं, जिनकी नामावली नीचे दी जा रही है। विस्तार भय से इनका विस्तृत विवरण यहाँ नहीं दिया है। (१०) प्राकृतकामधेनु—लंकेश्वर--इस व्याकरण में ३४ सूत्र हैं। इसमें प्राकृत के मूल नियमों का विवेचन है। (११) प्राकृतानुशासन-पुरुषोत्तम; इस व्याकरण में अनेक भाषा-विभाषाओं का वर्णन है । (१२) प्राकृतमणिदीप-अप्पयदीक्षित; इसमें प्राकृत के सभी उपयोगी नियमों का विवेचन मिलता है। (१३) प्राकृतानन्द--रघुनाथ कवि; इसमें ४१६ सूत्र हैं। वररुचि के प्राकृतप्रकाश के समान ही यह व्याकरण है। (१४) प्राकृतव्याकरण---श्री रतनचन्द्र जी म० । (१५) प्राकृतव्याकरण- समन्तभद्र । RETANTERNMENT PIRA म wwmai n ESGHANE अशा अनि आमा श्रीआनन्द श्रीआनन्द MARArmation Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jain Stibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9