Book Title: Prakrit Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 8
________________ प्रकाशकीय 'प्राकृत अभ्यास उत्तर पुस्तक अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। वैदिककाल से ही प्राकृत भाषा भारतीय आर्य भाषा परिवार की एक सुसमृद्ध लोक भाषा रही है। यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजनों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। भाषा संप्रेषण का सबल माध्यम होती है। उसका जीवन से घनिष्ठ संबंध होता है। जीवन के उच्चतम मूल्यों को जनभाषा में प्रस्तुत करना प्रजातान्त्रिक दृष्टि है। मौर्यों के काल में प्राकृत राजभाषा थी ही किन्तु उसका यह क्रम सातवाहनों के काल में भी जारी रहा। कालिदास के नाटकों में प्राकृत का प्रयोग इस बात का प्रमाण है कि उनके समय में प्राकृत बोलनेवालों की संख्या अधिक थी। प्राकृत भाषा की परम्परा अपभ्रंश को प्राप्त हुई। अनन्तर अपभ्रंश की परम्परा आधुनिक भाषाओं को प्राप्त हुई। ___ आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन के लिए प्राकृत का अध्ययन अपरिहार्य है। यह एक सार्वजनीन सिद्धान्त है कि किसी भी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना रचना और अनुवाद की शिक्षा के बिना कठिन है। प्राकृतअपभ्रंश को सीखने-समझने के लिए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना सन् 1988 में की गई। वर्तमान में प्राकृत भाषा के अध्ययन के लिए पत्राचार के माध्यम से प्राकृत सर्टिफिकेट व प्राकृत डिप्लामो पाठ्यक्रम संचालित हैं, ये दोनों पाठ्यक्रम राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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