Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ भूमिका पुस्तक में संगृहीत लेखों में प्रेक्षा-ध्यान के प्रायः सभी पक्ष सुचारू रूप से लिपिबद्ध हो गए हैं। सभी लेख अपने आप में स्पष्ट और विशद हैं। अतः उनमें चर्चित विषयों पर पुनः प्रकाश डालना पुनरुक्ति मात्र होगी। इस भूमिका में मैं पाठकों का ध्यान कुछ ऐसे तत्त्वों पर केन्द्रित करना पसंद करूंगा, जो प्रेक्षाध्यान के अंतरंग तत्त्व हैं। प्रज्ञा का विकास करना ही प्रेक्षा-ध्यान का मूल ध्येय है। इस ध्येय की परिपूर्ति के लिए ध्यान की प्रक्रिया में कुछ ऐसे विषय सम्मिलित किए गए जिन पर प्रकाश डालना यहां अभीष्ट हैं। पहली बात तो यह है, प्रेक्षा-ध्यान में कोई धर्म विशेष का आधार नहीं लिया गया है। मानव हित के लिए यथा व्यक्ति के विकास के लिए जिन तत्त्वों का अभ्यास आवश्यक है उन्हें ही इस ध्यान प्रक्रिया में उपयुक्त स्थान दिया गया है। उदाहरणार्थ-विद्या की साधना एवं सद् आचरण का अभ्यास ही दुःखों से विमुक्ति का एकमात्र मार्ग है । उस पक्ष को इस घोष द्वारा उजागर किया गया है-"आहंसु विज्जा चरणं पमोक्खं"। हमारे सारे दुःखो के कर्ता हम स्वयं ही है, कोई दूसरे व्यक्ति नहीं है। "सयंकडं णण्ण कडं च दुक्खं"। अतः इस तत्त्व को सही ढंग से समझ कर ही हम अपने आचरणों को संयत बनाएं। स्वयं को सारे दुःखों की जड़ मानकर ही हम अपने आचरणों में विशुद्धि ला सकते हैं। प्रेक्षा-ध्यान के अभ्यासियों के लिए एक महत्वपूर्ण ध्येय सूत्र हैं "संपिक्खए अप्पगमप्पएणं" अर्थात् स्वयं-स्वयं का आचरण देखें। इस प्रसंग में इस संदर्भ को सूक्ष्मता से देंखे तो यह स्पष्ट हो जाता है कि साधक अपनी सारी प्रवृत्तियों को सही प्रकार से अवलोकन करें और यह देखने का प्रयत्न करें कि उसने अपने कर्तव्यों का पालन यथाविधि किया है या नहीं ? जीवन की शुद्धि में अवश्य करणीय विधानों का पालन किया है या नहीं ? कोई ऐसे शेष तो नहीं रह गए हैं जिन्हें वह पालन कर सकता था, परन्तु किया नहीं। साधक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 186