Book Title: Pradyumna Charitra Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 9
________________ प्रद्यम्न २ अथ प्रथमः सर्गः । * मूल ग्रंथका मंगलाचरण * श्रीमतं सन्मति नत्वा नेमिनाथं जिनेश्वरम् । मदनो विश्वजेतापि बाधितुं नो शशांक यम् ॥ १ ॥ वर्द्धमानं जिनं नत्वा वर्द्धमानं सतामिह । यद्रूपदर्शनाज्जातः सहस्रनयनो हरिः ॥ २ ॥ प्रणम्य भारतीं देवीं जिनेन्द्रवचनोद्गताम् । चरितं कृष्णपुत्रस्य वक्ष्ये सूत्रानुसारतः ॥ ३ ।। अर्थात् अनन्त चतुष्टयरूप अन्तरङ्गलक्ष्मी तथा समवशरणादिरूप बाह्यलक्ष्मीसंयुक्त श्रीमहावीरस्वामी और श्री नेमिनाथस्वामीको जिन्हें कि त्रिलोकविजयी कामदेव भी कुछ बाधा न कर सका, नमस्कार करके, तथा सत्पुरुषों की पुण्यराशिको बढानेवाले, जिनके दर्शनमात्र से सौधर्म इन्द्रके हजार नेत्र हो गये ऐसे श्रीवद्ध मान स्वामीको नमस्कार करके, तथा श्रीजिनेन्द्र मुखसे प्रगट हुई श्री सरस्वती देवीको नमस्कार करके, मैं पूर्व आचार्यों के कहे अनुसार श्रीकृष्णनारायणके पुत्र प्रद्युम्नकुमारका चरित्र कहता हूँ ॥ १-३ ॥ यह चरित्र श्रीमहासेनादि श्राचार्योंने जिसप्रकार कहा है, उसप्रकारसे मैं अल्पमति कैसे कह सकता हूँ ? तथापि उनके चरण कमलोंको प्रणाम करनेसे मुझे जो पुण्यकी प्राप्ति हुई है, उसके द्वारा श्रीद्युम्नचरित्र ग्रन्थ रचने में मुझे अवश्य ही कुछ परिश्रम न होगा ।। ४-५ ।। सदाकाल निर्मल चित्तके धारक, परनिन्दा करने में मूक ( गूंगे ) और सर्व प्राणियोंके उपकार करनेवाले सज्जनों को मेरा बारम्बार नमस्कार है ॥ ६ ॥ साथ ही दूसरोंके दूषण निकालने में तत्पर रहनेवाले दुर्जनों को आशीर्वाद भी है कि, वे चिरकालतक श्रानन्दित रहें क्योंकि उनके प्रसादसे लोग चतुर हो जाते हैं ॥ ७ ॥ श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कामदेव का चरित्र तो कहाँ और अल्प विषय को समझनेवाली मेरी बुद्धि कहाँ ? भला दोनों भुजाओं से, विस्तीर्ण और गम्भीर समुद्रको तिरके कोई पार पहुँच सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only चरित्र www.jaelibrary.orgPage Navigation
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