Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 10
________________ प्रद्यम्न ७ ३ ॥ ८ ॥ विद्वानोंके सामने मैं मन्दबुद्धि कविता करने की इच्छासे उसी तरह उपहासका पात्र बनूंगा, जैसे ऊँचे वृक्ष के फलोंको तोड़ने की इच्छा करनेवाला कुबड़ा ( कुब्ज ) मनुष्य हास्यपात्र बनता है ॥ ६ ॥ मैं व्याकरण, छन्द, अलंकार, नाटकादि कुछ नहीं जानता हूँ केवल पुण्यके उदय से मनमें जो उत्साह उत्पन्न हुआ है, उसीसे पापका नाश करनेवाला चरित्र कहता हूँ ॥ १० ॥ श्रीजिनेन्द्रदेवकी जो पूजा इन्द्रगण उत्तमोत्तम कल्पवृक्षोंके फूलोंसे करते हैं, उसे क्या मनुष्य कल्हार (संध्या को खिलनेवाले श्वेत कमल) पत्रोंसे नहीं करते हैं ? करते ही हैं ॥। ११ ॥ श्री जिनसेनादि पूज्य प्राचार्यों ने जिस तरह निरूपण किया है, उसीके अनुसार मैं शक्तिहीन भी उनके चरणारविंदोंकी सेवा के प्रसादसे वर्णन करता हूँ ||१२|| जिस चरित्र के बाँचने तथा सुननेसे पापका नाश होता है, उसे सत्पुरुषों को और विशेषकर भव्य जीवोंको अवश्य ही सुनना चाहिये || १३ || मैं मन्दमति यह शुभ चरित्र केवल पाप शत्रुके विनाशार्थ और पुण्य की प्राप्तिके लिये लिखता हूँ || १४ || इस चरित्रको मैं भव्य जीवों के ज्ञानकी वृद्धि के लिये, पुण्यफलका दृष्टांत देनेके लिये, तथा बालकों की बुद्धिकी बढ़वारीके लिये बहुत ही सुगम रचता हूँ ।। १५ ।। इति प्रस्तावना । इस पृथ्वीतलपर जम्बूवृक्षोंके आकारसे चिह्नित एक जम्बूद्वीप नामका द्वीप है, जिसकी सुवृत्त ( उत्तम वृत्तों के धारण करनेवाले ) राजाके समान वाहिनीनाथ सेवा करते हैं । जिस तरह राजाकी वाहिनीनाथ अर्थात् सेनापति अथवा मांडलिक राजा सेवा करते हैं, उसी तरह जम्बूद्वीपकी वाहिनीनाथ अर्थात् लवणसमुद्र सेवा करता है । जिस तरह राजा सुवृत्त अर्थात् सदाचारी है, उसी तरह जम्बूद्वीप सुवृत्त अर्थात् गोलाकार है ॥ १६ ॥ उसमें भरत क्षेत्र नामका एक क्षेत्र है, जो विख्यात है तथा तीर्थंकरों के पंचकल्याणक के स्थानों द्वारा पवित्र और पापका नाश करने वाला एक तीर्थ ही है Jain Educalon International For Private & Personal Use Only चरित्र www. library.org

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