Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Hasmukh Chudgar
Publisher: Hasmukh Chudgar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ कर्ता : श्री पूज्य यशोविजयजी महाराज ऋषभदेव हितकारी जगतगुरु ! ऋषभदेव हितकारी ! प्रथम तीर्थकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति ब्रह्मचारी - जगत० ॥ १ ॥ वरसीदान देई तुम जगमें, ' ईलति इति निवारी | तैसी काही करतुं ! नाही करुना, साहिब ! बेर हमारी - जगत० ॥२॥ मांग नहीं हम हाथी-घोरे, धनर-कण-कंचन नारी । दिओ मोहि चरन - कमलकी सेवा, याहि लगत मोहे प्यारी जगत ० ॥ ३ ॥ भवलीला-वासित सुर डारे, तुम पर सबही उवारी । मेरो मन निश्चल कीनो, तुम आणा शिर धारी - जगत० ॥ ४ ॥ ऐसी साहिब नहि कोउ जगमें, यासुं होय ' दिलदारी । दिल ही दलाल प्रेम के बीचे, तिहां हक खेंचे गमारी - जगत० ॥ ५ ॥ तुम ही साहिब मैं हूं बंदा, या मत दिओ विसारी । श्री नयविजय विबुधसेवक के, तुम हो परम उपकारी - जगत० ॥६॥ ४

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 384