Book Title: Prachin Jain Sahitya me Ganitiya Shabdavali
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

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Page 5
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ इस प्रकार के सैकड़ों शब्द जैन साहित्य से एकत्र किये जा सकते हैं। उनका आधुनिक गणित के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने से जैनाचार्यों के योगदान को रेखांकित किया जा सकता है । केवल गणित के क्षेत्र में ही नहीं, इन शब्दों से भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर भी नया प्रकाश पड़ सकता है । गणित में जो सवाल दिये जाते हैं वे जन-जीवन को व्यक्त करते हैं । प्राचीन ग्रन्थों में स्त्री-विक्रय, पशु-विक्रय के सवाल मिलते हैं । किन्तु जैन ग्रन्थों में जैन दर्शन के प्रभाव के कारण ऐसे सवाल नहीं दिये गये हैं। यहाँ कमलों, भ्रमरों, सरोवरों एवं दान की वस्तुओं को आधार मानकर सवाल दिये गये हैं । जैसे गणित-तिलक में कहा गया है कि दो भ्रमर कमल पर परागरंजित हो रहे हैं, शेष के आधे किसी गजराज के मद का आनन्द ले रहे हैं, बाकी वहां भ्रमरों का एक जोड़ा देखा गया तो कुल कितने भौंरें थे? जैन साहित्य से इस प्रकार के सभी सवालों को एकत्र कर यदि उनका अध्ययन किया जाय तो कई सांस्कृतिक पक्ष उजागर हो सकेंगे। गणितीय शब्दावली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन भी बहुत उपयोगी है। आज हमारे सामने जो शब्द प्रचलित हैं वे हजारों वर्षों की यात्रा कर यहाँ तक पहुँचे हैं। अतः उनके परिवेश तथ्य दे सकता है। 'ओनामासि धम' आज भी शिक्षा प्रारम्भ करते समय बच्चों से कहलवाया जाता है। जो जैन काल में 'ॐ नमः सिद्धम' का अपभ्रंश है। वानर' का अर्थ बन्दर है। किन्तु यह शब्द क्यों प्रचलित हुआ? इसके तह में जायें तो ज्ञात होता है कि वा का अर्थ है समान और नर माने मनुष्य । मनुष्य जैसा जो हो वह वानर । इस एक शब्द से मानव के विकासवाद का समर्थन हो जाता है । प्राकृत में कृषि को करिसि कहते हैं । यह करिसि तमिल में अरिसि के रूप में प्रचलित हो गया । चूंकि वहाँ कृषि में चावल अधिक होता है अतः चावल के लिए अरिसि शब्द प्रचलित हो गया । अंग्रेजों का प्रथम सम्पर्क मद्रास में अधिक रहा। उन्होंने चावल के लिए प्रचलित अरिसि शब्द को राइस कहना प्रारम्भ कर दिया। शब्दों के विपर्यय से यह स्वाभाविक हो गया। शब्दों के प्रयोग की कथा प्रत्येक विज्ञान को जानना आवश्यक है। भारतीय ज्योतिष में दिन और मासों के नाम प्रचलित होने की सुन्दर कथाएँ हैं। जैसे अश्विनीकुमार नामक देव के लिए भाद्रप्रद के बाद आने वाला माह सुनिश्चित था। किन्तु कालान्तर में 'अश्विनीकुमार माह' कहना कठिन पड़ने लगा तो इसके दो टुकड़े हो गये और हम इस माह को आश्विन तथा कुवार दो नामों से जानने लगे। व्यापार एवं गणितशास्त्र में आज 'ब्याज' बहुत प्रचलित शब्द है। प्राचीन काल में इसके लिए कुसीद शब्द प्रचलित था। फिर वृद्धि शब्द प्रयोग में आया। किन्तु संस्कृत साहित्य में ब्याज पर पैसा लेना या देना दोनों ही हेय माना गया। धीरे-धीरे इस धन्धे में छल-कपट और बेईमानी बढ़ गई । अतः इसके लिए संस्कृत का 'ब्याज' शब्द प्रयुक्त होने लगा, जिसका अर्थ तर्कशास्त्र में छल होता है । फिर ब्याज का अर्थ क्षतिपूर्ति करने वाला कर हो गया। बाद में गुजरात में ब्याज का अर्थ सूद के रूप में प्रयुक्त हो गया। गणिततिलक की टीका में यह जनभाषा का ब्याज शब्द अपने प्रचलित अर्थ में संस्कृत में प्रविष्ट जैन गणित के ग्रन्थों में कमलवाची शब्दों का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। यदि ऐसे सभी शब्दों का संकलन कर उनके इतिहास को खोजा जाय तो कमल-संस्कृति से जैन दर्शन का कहीं गहरा सम्बन्ध देखने को मिलेगा। गणितशास्त्र के जैन ग्रन्थों में कई शब्दों की नयी व्याख्याएँ प्राप्त होती हैं, उनसे गणित के पारिभाषिक शब्दों को समझने में मदद मिलती है। जैन ग्रन्थों में 'रज्जू' का अर्थ स्वयंभूरमण समुद्र का प्राचीन जैन साहित्य में गणितीय शब्दावलि : डॉ० प्रेमसुमन जैन | २०३ www

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