Book Title: Prachin Jain Sahitya me Ganitiya Shabdavali Author(s): Prem Suman Jain Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 3
________________ ...................... .................. - साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ III.... - iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii ।।।। विषम चतुष्कोण समचक्रवाल विषम चक्रवाल चक्रार्ध चक्रावाल चक्राकार i i .......... । । । । । । । । । । एकतो अनन्त द्विविधानन्त देशविस्तारानन्त सर्वविस्तारानन्त शाश्वतानन्त भंग (स्थान क्रम) ओज (विषम संख्या) युग्म (सम संख्या) विकल्प गणित (क्रमचय तथा संचय) सूर्य प्रज्ञप्ति (सूत्र ११, १६, २५, १००) त्रिकोण समचतुरस्र पंचकोण विषमचतुरस्र समचतुष्कोण स्थानांग सूत्र परिकम्म (संख्यान) ववहार (संख्यान) रज्जू (संख्यान) रासी (संख्यान) कलासवर्ण यावत्तावत् वर्ग वर्ग वर्ग गणिय सूक्ष्म भगवती सूत्र संख्येय असंख्येय संयोग (संचय) त्र्यस्र चतुरस्त्र आयत वृत्त परिमडंल (दीर्घवृत्त) प्रतर (समतल) उत्तराध्ययन सूत्र (अ० ३० गा० १०-११) वर्ग घन वर्गवर्ग (४) अनुयोगद्वार सूत्र: स्थान द्रव्य प्रमाण क्षेत्र प्रमाण | | । । । । । । । घन (ठोस) घनत्र्यस्र (त्रिभुजाधार सूची स्तम्भ) घनचतुरस्र (घनवर्ग) घनायत घनवृत्त धनपरिमडंल वलयवृत वलयत्र्यत्र वलयचतुरस्र . ... ......... घनवर्ग (६) घनवर्गवर्ग (१२) (बीजगणित घातों के नाम) ।। रसमान सूच्यंगुल प्रतरांगुल प्राचीन जैन साहित्य में गणितीय शब्दावलि : डॉ० प्रेम सुमन जैन | २०१ www.jaPage Navigation
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