Book Title: Prachin Jain Sahitya me Ganitiya Shabdavali
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ प्राचीन जैन साहित्य में गणितीय शब्दावलि (Mathematical Terminology in Early Jain Literature) डा. प्रेमसुमन जैन ( जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ) जैन साहित्य विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है । इसमें प्रारम्भ से ही जो सिद्धान्त और दर्शन के ग्रन्थ लिखे गये हैं उनमें प्राचीन भारतीय गणित के कई सिद्धान्त एवं पारभाषिक शब्दावलि का प्रयोग हुआ है । षट्खण्डागम और स्थानांग सूत्र आदि ग्रन्थों की सामग्री इस दृष्टि से उपयोगी है । तिलोयपण्णत्त में गणित एवं भूगोल दोनों की भरपूर सामग्री | सूर्यप्रज्ञप्ति एवं चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थ भारतीय साहित्य पर यूनानी प्रभाव के पहले के ग्रन्थ हैं । अतः इनकी सामग्री भारतीय गणित की मौलिक उद्भावनाओं के लिये महत्वपूर्ण है । भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, तत्वार्थ सूत्र में प्राप्त गणितीय सामग्री प्राचीन भारतीय गणित के इतिहास में कई नये तथ्य जोड़ती है। जैन साहित्य में प्राप्त गणितीयसामग्री का पूर्ण वैज्ञानिक एवं विवेचनात्मक अध्ययन स्वतन्त्र रूप से अभी नहीं हुआ है । किन्तु भारतीय गणित के इतिहास को लिखने वाले विद्वानों ने जैन साहित्य की इस सामग्री की ओर मनीषियों का ध्यान अवश्य आकर्षित किया है । डा० उपाध्याय ने गणितीय शब्दावली के विवेचन में भी जैन ग्रन्थों में प्राप्त गणित की सामग्री को उजागर किया है । प्राचीन भारतीय गणित के मध्यकाल अथवा स्वर्णयुग में भी गणित के प्रयोग में जैनाचार्यों का विशेष योग रहा है । आर्यभट से प्रारम्भ होने वाले एवं भास्कर द्वितीय तक चलने वाले इस ५०० ई० से १२०० ई० तक के काल में महावीराचार्य द्वारा प्रणीत गणितसार-संग्रह नामक ग्रन्थ अंकगणित की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से एक है । लघुतम समापवर्त्य के जिस नियम का प्रारम्भ यूरोप में १५वीं शताब्दी में हुआ, उस आधुनिक नियम को महावीराचार्य ने ८-हवीं शताब्दी में ही प्रस्तुत कर दिया था । भिन्नों, श्रेढियों तथा अंकगणितीय प्रश्नों का जितना विशद और विस्तृत रूप गणितसारसंग्रह में मिलता है, उतना अन्यत्र नहीं है । इस जैनाचार्य की यह मान्यता थी कि इस चराचर संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है, जिसके आधार में गणित न हों । बहुभिविप्रलापैः किम् त्रैलोक्ये सचराचरे । यत्किंचिद्वस्तु तत्सर्वं गणितेन विना न हि ॥ प्राचीन जैन साहित्य में गणितीय शब्दावलि : डॉ० प्रेमसुमन जैन | १६६

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6