________________ 64 आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ सामूहिक चेतना विद्यमान थी, जिसके अनुसार खुरासान, बलख और पामीर प्रदेश से लेकर लंका तक के भूभाग को एक ही देश अर्थात् कुमारी द्वीप के अन्तर्गत माना जाता था। कुमारिका खण्ड की सूची में चार खूटों के बताने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण नाम दिए हैं, जैसे नेपाल, गाजनक (गाजना या गाजनी-) कम्बोज, बाल्हीक (बल्ख बुखारा), कश्मीर, ब्राह्मणवाहक-बहमनवा या ब्राह्मणाबाद या सिन्ध (राज, शेखर का ब्राह्मणवह), सिन्धु, अति सिन्धु (अर्थात्-सिन्धु के इस पार उस पार के देश) कच्छ, सौराष्ट्र, कोंकण, कर्नाट, लंका, सिंहलद्वीप, पाण्डथ, पांसुदेश (उडीसा का पांसु राष्ट्र), कामरूप, गौड़, बरेन्दुक (बारेन्द्री, पूर्वबंगाल), किरात विजय, (श्रासाम-तिब्बत की सीमा का प्रदेश), अश्वमुख देश (किन्नरों का देश रामपुर बुशहर)-इस प्रकार भारत देश की परिक्रमा इन नामों में श्रा जाती है। इस देश का इतिहास गंगा की प्रवाह हिमालय के ऊंचे शिखरों से उतर कर गंगासागर तक प्रवाहित होता रहा है / कहां एक ओर वैदिक काल और कहां दूसरे छोर पर मध्यकालीन जीवन और संस्कृति ? किन्तु यह निश्चय है कि भारतीय संस्कृति अनन्त भेदों के बीच में भी मौलिक एकता और समानता की स्वीकृति और प्राग्रह के उस व्रत से कभी विचलित नहीं हुई जिसे उसके मनीषी विनों ने ऋग्वेद में ही उसके लिये स्थिर कर दिया था--- समान मंत्र, समान समिति, समान मन-समान सबका चित्त / सबके लिये समान मंत्र अभिमंत्रित / सबकी समान हवि से, यह अग्निहोत्र प्रवृत्त / / समान सबकी प्रेरणा, समान सबके हृदय, समान सबके मानस, अतः साथ सबकी स्थिति // 1 // समानो मंत्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् / समानं मंत्रमाभिमंत्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि / / समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः / समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति / / (ऋ. 10 / 12 / 3-4) NOIAEO D NEW Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org