Book Title: Prabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Author(s): Pravesh Bharadwaj
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 10
________________ (ix ) विवेचन होना शेष था। इस अभाव की श्रम-साध्य पूर्ति डॉ० प्रवेश भारद्वाज ने की है। अपने शोध-कार्य के दौरान वे मुझसे इस ग्रन्थ के प्राकृत भाषा के उद्धरणों की गुत्थियों को सुलझाने प्रायः आया करते थे। इससे उनके कार्य की प्रासंगिकता एवं अध्ययन-निष्ठा का पता मुझे चला। ___ ए० के० मजुमदार ने राजशेखर को निकृष्टतम इतिवृत्तकार कहा है और बस्तुपाल-तेजपाल प्रबन्ध के कई दोष दर्शाये हैं। प्रस्तुत कृति में इन आरोपों का प्रक्षालन किया गया है और ए० के० मजुमदार महोदय ने मूल पाठ पढ़ने में जो भूल की है उसे सुधारा गया है । इसी प्रकार टॉनी महोदय की भूमिका को भी सुधारा गया। अतः यह सत्य है कि राजशेखर का प्रवन्धकोश जैन इतिहास-दर्शन का अमूल्य ग्रन्थ है। __इसके साथ ही लेखक ने समानविषयक अन्य जैन ग्रन्थों की जो तुलना की है उससे लेखक की तुलनात्मक अध्ययन क्षमता का पता चलता है। इस ग्रन्थ के अन्त में पाँच परिशिष्ट, सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची, राजशेखरकालीन भारत का मानचित्र, एक अनुक्रमणिका भी दी गई है। इससे ग्रन्थ का महत्व बढ़ गया है। ___ आशा है कि भारतीय इतिहास-दर्शन के सुधि पाठक इससे लाभान्वित होंगे। वाराणसी १०-८-१९९४ ई० प्रो०० सागरमल जैन निदेशक, पार्श्वनाथ शोधपीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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