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जून - २०१२
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इस प्रश्न पर एकमत नहीं है तो फिर इस आधार पर पउमचरियं की परम्परा का निर्धारण कैसे किया जा सकता है ? । साम्प्रदायिक मान्यताओं के स्थिरीकरण के पूर्व निर्ग्रन्थ परम्परा में विभिन्न धारणाओं की उपस्थिति एक सामान्य बात थी । अतः इस ग्रन्थ के सम्प्रदाय का निर्धारण करने में व्रतों के नाम एवं क्रम सम्बन्धी मतभेद सहायक नहीं हो सकते ।
__ (७) पउमचरियं में अनुदिक् का उल्लेख हुआ है ।१७ श्वेताम्बर आगमों में अनुदिक् का उल्लेख नहीं है, जबकि दिगम्बर ग्रन्थ (यापनीय ग्रन्थ) षट्खण्डागम एवं तिलोयपण्णत्ती में इसका उल्लेख पाया जाता है ।१८ किन्तु मेरी दृष्टि में प्रथम तो यह भी पउमचरियं के सम्प्रदाय निर्णय के लिए महत्त्वपूर्ण साक्ष्य नहीं माना जा सकता है, क्योंकि अनुदिक् की अवधारणा से श्वेताम्बरों का भी कोई विरोध नहीं है। दूसरे जब अनुदिक् शब्द स्वयं आचाराङ्ग में उपलब्ध है१९ तो फिर हमारे दिगम्बर विद्वान् यह कैसे कह देते हैं कि श्वेताम्बर परम्परा में अनुदिक् की अवधारणा नहीं है ?
(८) पउमचरियं में दीक्षा के अवसर पर ऋषभ द्वारा वस्त्रों के त्याग का उल्लेख मिलता है ।२० इसी प्रकार भरत द्वारा भी दीक्षा ग्रहण करते समय वस्त्रों के त्याग का उल्लेख है ।२१ किन्तु यह दोनों सन्दर्भ भी पउमचरियं के दिगम्बर या यापनीय होने के प्रमाण नहीं कहे जा सकते । क्योंकि श्वेताम्बर मान्य ग्रन्थों में भी दीक्षा के अवसर पर वस्त्राभूषण त्याग का उल्लेख तो मिलता ही है ।२२ यह भिन्न बात है कि श्वेताम्बर ग्रन्थों में उस वस्त्र त्याग १७. देखिए जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन (लेखक
डा. सागरमल जैन) भाग-२, पृ. सं. २७४ १८. पउमचरियं, १०२/१४५ १९. पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन, पृष्ठ १९, पद्मपुराण, भूमिका (पं. पन्नालाल), पृ. ३० २०. जो इमाओ (दिसाओ) अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ अणुदिसाओ,
सोऽहं । आचाराङ्ग १/१/१/१, शीलाङ्कटीका, पृ. १९ । (ज्ञातव्य है कि मूल पउमचरियं मे केवल 'अनुदिसाइ', शब्द है जो कि आचाराङ्ग में उसी रूप में है । उससे नौ अनुदिशाओं की कल्पना दिखाकर उसे श्वेताम्बर आगमों में अनुपस्थित कहना उचित
नहीं है।) २१. देखिए, पउमचरियं ३/१३५-३६ २२. पउमचरियं, ८३/५