Book Title: Paum Chariyam Ek Sarvekshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 23
________________ ९४ अनुसन्धान-५९ रविषेण और स्वयम्भू ने उनके ग्रन्थों का अनुसरण करते हुए भी उनके नाम का स्मरण तक नहीं किया है, इससे यही सिद्ध होता है कि वे उन्हें अपने से भिन्न परम्परा का मानते थे । किन्तु यह स्मरण रखना होगा कि वे उसी युग में हुए हैं जब श्वेताम्बर, यापनीय और दिगम्बर का स्पष्ट भेद सामने नहीं आया था । यद्यपि कुछ विद्वान उनके ग्रन्थ में मुनि के लिए 'सियंबर' शब्द के एकाधिक प्रयोग देखकर उनकी श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध करना चाहेंगे, किन्तु इस सम्बन्ध में कुछ सावधानियों की अपेक्षा है । विमलसूरि के इन दो-चार प्रयोगों को छोडकर हमें प्राचीन स्तर के साहित्य में कहीं भी श्वेताम्बर या दिगम्बर शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है। विद्वानों ने भी विमलसूरि के पउमचरियं में उपलब्ध श्वेताम्बर (सियंबर) शब्द के प्रयोग को सम्प्रदाय सूचन न मानकर उस युग के सर्वत्र मुनि का सूचक माना है । हो सकता है कि परवर्ती श्वेताम्बर आचार्यों या प्रतिलिपि कर्ताओं ने यह शब्द बदला हो, यद्यपि ऐसी सम्भावना कम है। क्योंकि सीता साध्वी के लिये भी सियंबर शब्द का प्रयोग उन्होंने स्वयं किया होगा । मुझे ऐसा लगता है विमलसूरि के ईसा की प्रथम-द्वितीय शती के अंकन भी इसकी पुष्टि करते हैं । जिस प्रकार सर्वत्र साध्वी सीता को विमलसूरि ने सियंबरा कहा उसी प्रकार सवस्त्र मुनि को भी सियंबर कहा होगा । उनका यह प्रयोग निर्ग्रन्थ मुनियों द्वारा वस्त्र रखने की प्रवृत्ति का सूचक है, न कि श्वेताम्बर दिगम्बर संघभेद का । विमलसूरि निश्चित ही श्वेताम्बर और यापनीय - दोनों के पूर्वज है । श्वेताम्बर उन्हें अपने सम्प्रदाय का केवल इसीलिये मानते हैं कि वे उनकी पूर्व परम्परा से जुड़े हुए हैं। श्रीमती कुसुम पटोरिया ने महावीर जयन्ती स्मारिका जयपुर वर्ष १९७७ ई. पृष्ठ २५७ पर इस तथ्य को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि विमलसूरि और पउमचरियं यापनीय नहीं है । वे लिखती हैं कि 'निश्चित विमलसूरि एक श्वेताम्बराचार्य है । उनका नाइलवंश, स्वयम्भू द्वारा उनका स्मरण न किया जाना तथा उनके (ग्रन्थ में) श्वेताम्बर साधु का आदरपूर्वक उल्लेख - उनके यापनीय न होने के प्रत्यक्ष प्रमाण है।' विमलसूरि और उनके ग्रन्थ पउमचरियं को यापनीय मानने में सबसे

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