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जून २०१२
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(३) पुन: पउमचरियं में महावीर के गर्भ - परिवर्तन का उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु मेरी दृष्टि से इसका कारण भी उसमें महावीर की कथा को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत करना है । पुनः यहाँ भी किसी अभावात्मक तथ्य के आधार पर ही कोई निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न होगा, जो कि तार्किक दृष्टि से समुचित नहीं है ।
(४) पउमचरियं में पाँच स्थावरकायों" के उल्लेख के आधार पर भी उसे दिगम्बर परम्परा के निकट बताने का प्रयास किया गया है । किन्तु हमें यह ध्यान रखना होगा कि स्थावरों की संख्या तीन मानी गई है अथवा पाँच, इस आधार पर ग्रन्थ के श्वेताम्बर या दिगम्बर परम्परा का होने का निर्णय करना सम्भव नहीं है । क्योंकि दिगम्बर परम्परा में जहाँ कुन्दकुन्द ने पंचास्तिकाय (१११) में तीन स्थावरों की चर्चा की हैं, वहीं अन्य आचार्यो ने पाँच की चर्चा की है । इसी प्रकार श्वेताम्बर परम्परा के उत्तराध्ययन आदि प्राचीन ग्रन्थों में भी, तीन स्थावरों की तथा पाँच स्थावरों की - दोनों मान्यताएँ उपलब्ध होती है । अत: ये तथ्य विमलसूरि और उनके ग्रन्थ की परम्परा के निर्णय का आधार नहीं बन सकते । इस तथ्य की विशेष चर्चा हमने तत्त्वार्थसूत्र की परम्परा के प्रसंग में की है, साथ ही एक स्वतन्त्र लेख भी श्रमण अप्रैल-जून ९३ में प्रकाशित किया है, पाठक इसे वहाँ देखें ।
(५) कुछ विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि पउमचरियं में १४ कुलकरों की अवधारणा पायी जाती हैं ।१२ दिगम्बर परम्परा द्वारा मान्य ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ती में भी १४ कुलकरों की अवधारणा का समर्थन देखा जाता है१३ अत: यह ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा का होना चाहिए । किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में अन्तिम कुलकर के रूप में ऋषभ का उल्लेख है । ऋषभ के पूर्व नाभिराय तक १४ कुलकरों की अवधारणा तो दोनों परम्पराओं में समान है । अत: यह अन्तर ग्रन्थ के सम्प्रदाय के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण नहीं माना जा सकता है । पुनः जो कुलकरों के नाम पउमचरियं
११. पउमचरियं, २/६५ एवं २/६३ |
१२. पउमचरियं, ३/५५-५६
१३. तिलोयपण्णत्ति, महाधिकार गाथा - ४२१ ( जोवराज ग्रन्थमाला शोलापुर) ।