Book Title: Pashchatya Darshan me Karm Siddhant Author(s): K L Sharma Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf View full book textPage 8
________________ पाश्चात्य दर्शन में क्रिया-सिद्धान्त ] [ २२३ दैहिक एवं मानसिक परस्पर सम्बन्धित पहलू हैं) के समान क्रिया के बाह्य (दैहिक एवं निरीक्षणीय) तथा आन्तरिक (मानसिक एवं अनिरीक्षणीय) परस्पर सम्बन्धित पहल हैं । क्रिया के 'बाह्य' पहलू का सम्बन्ध उसने क्या (What) किया तथा कैसे तथा किस परिस्थिति में किया, से है जबकि आन्तरिक पहल का सम्बन्ध उसकी मानसिक स्थिति (विचार, अभिप्राय, प्रेरणा आदि) से है। कर्ता ने 'क्या किया' और 'क्यों किया' में भेद की बात उठायी जाती है। दूसरे शब्दों में क्रिया के वर्णन (description) एवं मूल्यांकन (evaluation) के बीच एक विभाजन रेखा खींचना, सिद्धान्ततः सम्भव भी है तथा व्यावहारिक रूप से वांछनीय भी। असीमित विभाजनशीलता : सामान्य भाषा में व्यक्तिगत क्रियाओं (individual actions) जैसे 'ताले में चाबी घुमाना' तथा जटिल क्रिया में भेद सर्वविदित है। क्या यह भेद स्वीकार करने योग्य है ? क्या प्रत्येक क्रिया वास्तव में क्रियाओं का एक सिलसिला नहीं है ? क्या सभी क्रियाओं को खण्ड इकाइयों (Components) में विभाजित किया जा सकता है ? क्या विविधता (जैसा कि जीवों के विरोधाभास में है) सीमा रहित नहीं है ? सभी क्रियाओं को विभाजित नहीं किया जा सकता। विभाजन की भी एक सीमा होती है जो कर्ता की मानसिक स्थिति पर आधारित है। दो प्रमुख क्रिया उक्तियों : एक व्यक्ति ने क्रिया की' तथा 'एक व्यक्ति 'क्रिया कर सकता है' के अर्थ को विश्लेषित करने या निर्धारण करने की दो विधियाँ हैं। प्रथम प्रयास में मानव क्रिया को किन्हीं प्रकार के परिवर्तनों या घटनाओं में 'घटित' किया जाता है । भाषायी दृष्टि से इस बात को इस प्रकार कहेंगे-क्रिया उक्तियों (action talks) को प्रक्रिया-उक्तियों (non-action talks) में विश्लेषित करने का प्रयास करना । क्रिया उक्तियों को इस प्रकार विश्लेषित करने के उपागम को इतर तंत्रीय विधि (extra systemic) कहते हैं । 'व्यवहारवाद' (यहाँ व्यवहार का मोटे रूप में अर्थ है कोई भी दैहिक परिवर्तन या प्रक्रिया) जो मानव क्रियाओं को व्यावहारिक घटनाओं से तादात्म्य करता है, इस उपागम का उदाहरण है । द्वितीय उपागम के अनुसार मानव क्रिया की व्याख्या क्रमबद्ध रूप से . (systematically) की जाती है । दूसरे शब्दों में इस उपागम के अनुसार क्रिया युक्तियों की संरचनात्मक तंत्र अथवा फलन (calculus) द्वारा व्याख्या की जाती है। क्रियाओं की व्याख्या करने वाले कुछ सिद्धान्त क्रिया से सम्बन्धित सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय देने से पूर्व हम विटगैन्स्टोन के इस कथन को लें-"मैं अपना हाथ उठाता हूँ" इस तथ्य से अगर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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