Book Title: Paryavaran Parirakshan Apariharya Avashyakta Author(s): Harichandra Bharatiya Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 4
________________ D19 D2 D2 D DDDDDS.DOD DJa } जन-मंगल धर्म के चार चरण BIDDID DEO लोगों का लालच निरन्तर बढ़ता ही जायेगा और एक दिन दुनियां / निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या विकासशील देशों के लिए बहुत बड़ी के सामने अत्यन्त विकट स्थिति आ जायेगी। वे कहा करते थे- चुनौती है। "लोगों के भरण-पोषण के लिए धरती माता के पास पर्याप्त भण्डार 2. हमें हमारी लालसाओं और लोभ-लालच पर अंकुश लगाना है, किन्तु उनके लालच को पूरा करने की क्षमता उसमें नहीं है।" पड़ेगा। ये अपार विलासिता के आधार हैं, जिसके कारण पर्यावरण दुर्भाग्य से वही स्थिति हमारे सामने आ गई है। आज हम पृथ्वी का विशेष रूप से प्रदूषित हो रहा है। यहाँ अपरिग्रह एवं आर्थिक इतना दोहन और निम्नीकरण कर रहे हैं कि उसकी संभरण-क्षमता समानता की सच्ची भावना बहुत कारगर सिद्ध हो सकती है। इस के चुक जाने की नौबत आ रही है। पन्द्रहवीं शताब्दी में कश्मीर के क्षेत्र में विकसित देश विकास के नाम पर मानवता के प्रति अक्षम्य एक फकीर नन्द ऋषि (नूरुद्दीन शेख) ने अद्भुत बात कही थी कि अपराध के भागी हैं। उन देशों में संसार की मुश्किल से एक जब तक जंगल रहेंगे, तब तक कोई भूखों नहीं मरेगा। लेकिन हम चौथाई आबादी बसती है; किन्तु विकासशील देशों की अपेक्षा वनों और वन्य जीवों का तेजी से सफाया करते जा रहे हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करने में उनका योगदान तीन चौथाई है। समग्र पर्यावरण को विषाक्त बना रहे हैं। भारतीय मनीषियों ने तो विकसित देशों ने इस सन्दर्भ में विकास और पर्यावरण को विवाद इस तथ्य के मर्म को सहस्रों वर्ष पहले ही गहराई से समझ लिया का विषय बना दिया है। आजकल विकसित देश विकासशील देशों था। तभी तो उन्होंने अपने आराध्य देवी-देवताओं, अवतारों, को यह सीख दे रहे हैं कि वे विकास की गति को धीमा करें, तीर्थंकरों आदि के साथ किसी न किसी वनस्पति अथवा प्राणी को जबकि विकसित देशों को अपनी विलासिता में प्रबल कमी करके जोड़ दिया था, ताकि जन साधारण उनका विनाश नहीं करें; किन्तु कल-कारखानों और वाहनों की संख्या में भारी कमी करने तथा अपने आपको धर्म-परायण कहने वाले अधिकांश लोग इस खनन कार्यों को प्रायः बन्द करने की तत्काल आवश्यकता है। इसी महत्वपूर्ण पक्ष पर तनिक भी विचार नहीं करते। तरह यद्यपि विकासशील देशों को जनता की मूलभूत अगर हमें पृथ्वी पर अपना और अन्य जीव-जन्तुओं का / आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अभी विकास के कार्यक्रमों को अस्तित्व बनाये रखना है तो दृढ़ संकल्प के साथ मानव-समाज को आगे बढ़ाना है, तथापि भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन अपनी जीवन-पद्धति में प्रबल परिवर्तन लाना पड़ेगा। यह बात कार्यक्रमों को इस तरह नियोजित करना पड़ेगा जिससे प्रदूषण के कहने में बड़ी सरल प्रतीत होती है। किन्तु लोगों की जड़-प्रवृत्ति, कारण पर्यावरण अपने पनरुद्धार की क्षमता नहीं खो बैठे। निहित स्वार्थों के विरोध एवं अन्य व्यावहारिक कठिनाइयों को 3. हमें अपने वनों का परिरक्षण एवं पुनर्जनन करना होगा। देखते हुए इसे मूर्त रूप देना अत्यन्त दुष्कर कार्य है। भारतीय समाज को भी इस सन्दर्भ में अपनी उदात्त विश्व-दृष्टि के अनुरूप एक स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण के लिए धरती के एक तिहाई सामूहिक चेतना उत्पन्न करनी होगी तथा एक जुट होकर पर्यावरण भू-भाग यानी 33 प्रतिशत भूमि पर वन होने चाहिए। इस मानदण्ड की रक्षा में कार्यरत होना होगा। इस दृष्टि से सारा परिदृश्य बड़ा के अनुसार स्थिति बहुत निराशाजनक है। आजकल विश्व में वन निराशाजनक है। हम लोग न तो अपनी आध्यात्मिक विरासत के 16-17 प्रतिशत और भारत में 9-10 प्रतिशत के आस-पास आ प्रति आस्थावान हैं और न वैज्ञानिक ज्ञान और सिद्धान्तों के प्रति पहुँचे हैं। वनों पर जैव-विविधता, जलवायु तथा भूमि की उर्वरता सच्चे हैं। अगर ऐसा होता तो क्या हम हमारे महान् पूर्वजों के निर्भर करती है। अतः जन-जन के बीच “वृक्ष लगाओ-वृक्ष "वसुधैव कुटुम्बकम्" सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह तथा सभी जीवों के बचाओ," "जब तक जंगल, तब तक मंगल", "पंचवटी में राम प्रति करुणाभाव के सिद्धान्तों को ताक में रखकर केवल प्रतीकों की मिलेंगे, पहले वृक्ष पाँच लगाओ" जैसे मंत्र फूंकने पड़ेंगे। प्रत्येक पूजा-अर्चना करते हुए धर्म के गौण पक्षों पर जोर देते रहते और व्यक्ति को प्रतिदिन औसतन 15 किग्रा ऑक्सीजन की आवश्यकता धर्म के विपरीत आचरण करते रहते? पर्यावरण के प्रदूषण को होती है, जो सामान्यतया पांच वृक्षों से प्राप्त होती है। पाँच वृक्ष कम करना तथा उसके परिरक्षण का माहौल तैयार करना किसी लगाने के पीछे यही मर्म है। सघन वनों के बीच ही पृथ्वी पर जीवों एक व्यक्ति या देश के बस की बात नहीं है। यह एक विश्व-स्तरीय के अस्तित्व की कुंजी बसती है।। समस्या है जिसके लिए प्रयास भी विश्व-स्तरीय ही होना आवश्यक 4. समग्र मानव-समाज को एक ऐसी नवीन जीवन-पद्धति के है। इस दिशा में कदम उठ चुके हैं और इस यज्ञ को सफल बनाने | आधार पर पुनर्गठित करने की आवश्यकता है, जिसके हेतु सबको कदम मिलाकर चलना पड़ेगा। इस दृष्टि से हमारे देश अधिकाधिक कार्य-कलाप सौर ऊर्जा से निष्पादित हो सकें ताकि में प्राथमिकता के आधार पर जो ठोस कदम उठने चाहिए, उनमें से खनिज ईंधन का उपयोग उत्तरोत्तर कम होता चला जाए। कुछ इस प्रकार हैं : ये कुछ बिन्दु हैं जो पर्यावरण परिरक्षण की दिशा निर्देशित 1. सर्व प्रथम हमें जनसंख्या पर प्रभावशाली नियंत्रण / करते हैं। पृथ्वी पर मनुष्य समेत समस्त जीव-जगत् के अस्तित्व को करना पड़ेगा। इस क्षेत्र में पश्चिमी देश हमसे बहुत आगे हैं। बनाये रखने के लिए पर्यावरण को प्रदूषण से बचाना अपरिहार्य Do अन्तरलत्कालतात. meanchontematianets3602005000-1000rpmalsawesonastseany0306:005 9000000000000 0 0000000000000000% D ASPacisters 590.298 D EPage Navigation
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