Book Title: Parshwanath Mahadandak Stuti Author(s): Pradyumnasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 82 एक अभिधानचिंतामणीनी जेम छ कांडमां विस्तरेलो नामकोश पण तेमने रचेला ग्रंथोनी यादीमां नों धायो छे. वळी व्याकरणविषयमांज एकादि शतपर्यन्तशब्दसाधनिका नामनी पण रचनानुं नाम मळे छे. आ रीते व्याकरण, कोष अने साहित्य तेमना खूब खेडायेला विषयो जणाय छे अने तेनो आ रचनाने भरपूर लाभ मळ्यो छे. वि.सं. १७८३नी आ रचना छे. जेसलमेरना श्रीपार्श्वनाथभगवाननी आ स्तुति छे. आ प्रभुजीनी प्रतिष्ठा आचार्य श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराजे करी छे. आ महादंडक स्तुतिना कर्ता उपाध्याय श्रीसहजकीर्तिमहाराजनी गुरुपरंपरा आ प्रमाणे स्तुतिना अंतमां आपी छे : श्रीरत्नसार शि. रत्नहर्ष शि. हेमनन्दन शिष्य उपाध्याय श्री सहजकीर्ति. तेमना ग्रंथोनी यादीमां एक नाम महावीर स्तुति वृत्ति एवं एक नाम मळे छे. आ महावीर स्तुति पण कोइ विशिष्ट रचना हशे के जेना उपर तेओए वृत्तिनी रचना करी होय. हस्तलिखित ज्ञान भंडारमां तपास करतां श्रीसहजकीर्ति उपाध्यायनी अन्य रचना मळे तो ते बहार आणवी जोइए. प्रस्तुत कृतिनी अन्य प्रति मळी नहीं तेथी केटलांक स्थानो शंकित रही गया छे. बहु विचारना अंते आ एकवार तो मुद्रित करी देवुं जोइए तेवुं लाग्यं. अन्यथा आ छे ते पण क्यांक काळनी गर्तामा विलीन थइ जाय. तेथी आ स्वरूपे अहीं आप्युं छे. आ स्तोत्र पंडित श्रीअमृतभाई मोहनलाल भोजक द्वारा प्राप्त थयुं छे तेनो सानंद उल्लेख करुं छं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9